Month: September 2016

आस्रव/संक्लेश

स्व और पर के निमित्त होने वाले सुख या दु:ख यदि विशुद्ध पूर्वक हैं तो पुण्यास्रव होगा, यदि संक्लेश पूर्वक हैं तो पापास्रव होगा ।

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कामना

जो कभी “काम-ना” आये । (याने काम की पूर्णता ना हो पाये) । चिंतन

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शरीर / आत्मा

एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा – ” नष्ट होने वाले इस शरीर में, नष्ट ना होने वाली आत्मा कैसे रहती है ? ”

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एकमत

एक दिशा में चार रिश्तेदार, चार कदम तब ही चलते हैं , जब पांचवा कंधे पर हो… (नीलांजना)

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फ़र्क पड़ता है

एक बार समुद्री तूफ़ान के बाद लाखों मछलियाँ किनारे पर तड़प तड़प कर मर रहीँ थीं ! एक बच्चे से रहा नहीं गया, और वह

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कश्मीर

फिर उड़ गयी नींद ये सोच कर,,, सरहद पर बहा वो खून मेरी नींद के लिये था…! 2) उम्र जन्नत में रह कर, उसे उजाड़ने

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वक्त

“वक़्त” हर “वक़्त” को “बदल” देता है, सिर्फ, “वक़्त” को थोड़ा “वक़्त” दो !

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उम्मीद

उम्मीदों से बंधा एक ज़िद्दी परिंदा है इनसान , जो घायल भी उम्मीदों से है, और ज़िंदा भी उम्मीदों पर है । (मंजू)

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विस्रसोपचय

वर्गणाऐं जो कर्मरूप परिवर्तित होने को तैयार खड़ीं हैं, आत्मा में प्रवेश करने को तैयार खड़ीं हैं । जैसे मच्छरदानी में घुसने को मच्छर तैयार

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मंगल आशीष

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September 30, 2016

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