Month: September 2016
त्याग धर्म
मोह को छोड़कर संसार, देह और भोगों से उदासीन परिणाम रखना त्याग धर्म है । बारसाणुवेक्खा-78 2) दान और त्याग में अंतर – * दान
तप धर्म
इच्छा का निरोध ही तप है । या अपेक्षा निरोध: तप: । आचार्य श्री विद्यासागर जी
संयम धर्म
मन,वचन,काय का सदुपयोग ही संयम है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी 2) एक बड़ा ही शरारती बच्चा था। उसे दिन-भर खेलना , टी वी देखना
सत्य धर्म
कहते हैं “सत्य कड़वा होता है”, पर वास्तविकता यह है कि सत्य कड़वा हो ही नहीं सकता । यदि कड़वा होता तो भगवान तो सदैव
शौच धर्म
पवित्रता, जो लोभ के अभाव में/संतोष से आती है, और शरीर की पवित्रता, गुणों से/तप से आती है । 2) एक कंजूस सेठ गड्ढ़े में गिर
समयप्रबद्ध
एक समय में बाँधी/उदय में आयी कर्मवर्गणाऐं । ये कम ज़्यादा हो सकती हैं । पाठशाला
आर्जव धर्म
मायाचारी का अभाव । 2) ईमानदारी, उन्मुत्त हृदय, स्पष्टवादिता, सादगी, भोलापन, सरलता ही आर्जव धर्म है । ईमानदारी की नाव पर तो हम सब सवारी
मार्दव धर्म
“म” से मान का “द” से दमन, “व” से विनम्रता द्वारा । 2) मार्दव धर्म का प्रारम्भ होगा… भगवान के सम्मान / गुणगान से, फिर गुरु
क्षमा धर्म
1) क्रोध आने के कारण… * मनोवृत्ति * आसक्ति * अपेक्षा गुरवर श्री क्षमासागर जी 2) क्रोध पर क्रोध करने से क्रोध कम नहीं होगा, क्षमा
लोग क्या कहेंगे !
पूरी जिंदगी हम इसी बात में गुजार देते हैं कि……. “चार लोग क्या कहेंगे”, और अंत में चार लोग बस यही कहते हैं कि…. “अरिहंत
Recent Comments