Month: January 2017
मिथ्यात्व
जो अनध्यवसाय*, संशय व विपर्यय युक्त हो । *अनध्यवसाय = बिना उद्यम; जैसे कुछ है, होगा, हमें क्या ! क्षु. ध्यानसागर जी
उपवास
शरीर और आत्मा को पुष्ट करने के लिये, उपवास रखा जाता है । यदि Diabetic हैं तो व्रत ना करके, व्रतियों की सेवा करें ।
धार्मिक / धर्मात्मा
धार्मिक यानि जो धार्मिक क्रियायें करता हो, धर्मात्मा यानि जिसने धर्म को आत्मसात किया हो । धर्म परिणामों में विशुद्धि के लिये, धर्म के लिये
धर्म का फल
धर्म से जीवन में उतार चढ़ाव तो नहीं रुक सकते, पर उनमें अपने को स्थिर रख सकते हैं ।
सावधानी
अकेले में भावों को संभालें, दुकेले में वचनों को, समाज में क्रियायों को संभालें । (शशि)
आसत्ति
जो सिर्फ़ आ सकती है, पर आकर जा नहीं सकती । “Attached” से समस्या नहीं है, “Attachment” से समस्या है । मुनि श्री तरुणसागर जी
जीवन और मृत्यु
जीवन एक बुलबुला है, किसी का छोटा किसी का बड़ा, मृत्यु, उसमें छेदा गया काँटा है । जो अपने को बड़ा मानता है, वह भी
परमुख
आयु और मोहनीय कर्म प्रकृतियों का परमुख उदय नहीं होता है । बाकी प्रकृतियों का स्वमुख और परमुख दोनों उदय होते हैं । श्री हरिवंश
अहंकार / निंदा
अहंकार से ऊँचा कोई “आसमान” नहीं, किसी की निंदा करने जैसा कोई “आसान” काम नहीं । (ललित)
Recent Comments