Month: June 2017

भगवत्वता

द्रढ़ता, स्थिरता, निर्विकारता ही भगवत्वता प्रगट करने में निमित्त हैं ।

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करुणा

संसारी जीव करुणा करते हैं, निमित्त के सहारे से । गुरु/भगवान करुणामय रहते हैं, उनको निमित्त की ज़रूरत नहीं; इसलिए अच्छे बुरे निमित्त का उन

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कर्म

इहभव और परभव के कल्याण के लिये…. कर्म-फल की परवाह करना, (जैसे ये करने का क्या फल होगा, ये ना करने का क्या फल होगा)

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माँ और संस्कार

पांड़वों की माँ वनवास में भी साथ रहीं, कौरवों की माँ ने उनके साथ रहकर भी उन पर नज़र तक नहीं डाली ।

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महत्त्वाकाँक्षा

मीठे पानी की नदी खारे समुद्र में क्यों गिरती है ? महत्त्वाकाँक्षा की वजह से, ऐसे व्यक्तियों का हश्र भी ऐसा ही होता है, अपना

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अजीवादि का ज्ञान

जीव, संवरादि का ज्ञान करना तो सही है पर अजीव, आश्रवादि का क्यों ? आचार्य शांतिसागर जी – संवरादि तो रत्न हैं जो आश्रवादि रेत

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सहानुभूति

जानवर विजातियों को दूध पिलाते हैं, मनुष्य जेठानी, देवरानी के बच्चे को नहीं ।

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मिठास

शक्कर तो सबके कपों में होती है, कुछ उसे घोल लेते हैं (जीवन में), कुछ ज़िंदगी भर फीकी चाय ही पीते रहते हैं, शक्कर बची

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धर्म का काम

गुण/अवगुण तो सबमें होते हैं, पर धर्म से गुणों में स्थिरता आती है जैसे दूध का दही बन जाता है। धर्म अवगुणों से ऊपर उठा

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मंगल आशीष

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June 13, 2017