Month: August 2017

जीना-मरना

जीने में क्या राहत थी ! मरने में तकलीफ़ है क्या ? तब दुनिया क्यों हँसती थी ? अब दुनिया क्यों रोती है ?? ~

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परिणमन/परिवर्तन

परिणमन = परिवर्तन एक ही अवस्था में, परिवर्तन = एक अवस्था छूटने पर दूसरी अवस्था में जाना, जैसे मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में जाना ।

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वज़ूद

‘तिनका’ हूँ तो क्या हुआ, ‘वज़ूद’ है मेरा, उड़ उड़ के हवा का ‘रुख़’ तो बताता हूँ…। (सुरेश)

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समर्पण

सम्यक् (सच्चा/पूर्ण) अर्पण/समर्पण हर कहीं करें नहीं, (सम्यक्) समर्पण करने के बाद, अपने पास कुछ छोड़ें नहीं ।

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चिंता / चिंतन

चिंता घुन है, चिंतन धुन । चिंता के आगे चिंतन शुरु होता है । चिंता दीवार है, चिंतन द्वार ।

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बंधन / संबंध

जो बाँधने से बँधे, और तोड़ने से टूट जाए; उसका नाम है “बंधन” । जो अपने आप बन जाए, और जीवन भर ना टूटे; उसका

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मोक्ष / मुक्ति

आज के युग में “मोक्ष” तो संभव नहीं है, पर मुक्ति संभव है – कमज़ोरियों/बुराईयों आदि से ।

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दु:ख

जिसको भी अपना बनाता हूँ, वह छोड़कर चला जाता है । दु:ख को अपना बना लो ! (आर.के.गुप्ता)

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मंगल आशीष

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August 31, 2017