Month: September 2017

शाश्वत

मैं परिवर्तन में जीता हूं और मौत से बेहद डरता हूं (हालाँकि मौत भी बदलाव है) यह सोचकर कि शाश्वत में जीना-मरना दोनों मुश्किल हैं…

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सुमिरन

मुँह में मिश्री डालकर… चाहे घूमें, चाहे बैठ जायें, चाहे लेट जायें । पर जब तक मुँह में मिश्री है तब तक मुँह मीठा रहेगा

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नियति

जो Best पुरुषार्थ के बाद शेष रह जाये, वह नियति है । चिंतन

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विकल्प

युवावस्था के विकल्प वृद्धावस्था/मरणावस्था के समय बहुत प्रबल बनकर उभरने लगते हैं, क्योंकि उस समय और कुछ करने को रहता ही नहीं है ।

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शब्द

“शब्द” मुफ़्त में मिलते हैं । लेकिन उनके चयन पर “निर्भर” करता है, कि उनकी क़ीमत “मिलेगी” या “चुकानी” पड़ेगी .. (अंजू जैन)

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ख़्वाहिश

ख़्वाहिशें मनुष्य को जीने नहीं देतीं और मनुष्य ख़्वाहिशों को मरने नहीं देता । (श्रीमती शर्मा)

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माँ-बाप

माँ-बाप के साथ हमारा सलूक… एक ऐसी कहानी है, जिसे लिखते तो हम हैं लेकिन हमारी संतान हमें पढ़कर सुनाती है । (धर्मेंद्र)

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अंत का इशारा

ख़तरे के निशान के बहुत क़रीब बह रहा है उम्र का पानी ; और, वक़्त की बरसात है कि थमने का नाम ही नहीं ले

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मंगल आशीष

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