Month: October 2017
पुरुषार्थ / भाग्य
अच्छा काम पुरुषार्थ से, लोगों के द्वारा उस काम को अच्छा मानना भाग्य ।
निष्ठा/प्रतिष्ठा
निष्ठा से प्रतिष्ठा मिलती है, पर प्रतिष्ठा के लिये की गई निष्ठा से, प्रतिष्ठा नहीं मिलती ।
चोरी और अचौर्य
बिना अनुमति दूसरे की चीज़ लेना चोरी, पर बिना अनुमति, दूसरे की वस्तु के ग्रहण का, भाव भी नहीं करना, अचौर्य – धर्म । गुरुवर
छोटा-बड़ा
दादा बच्चे को खिलाते हैं, बच्चा बड़ा होकर दादा जी को । फिर बड़ा कौन ? छोटा कौन ??
मूल्य
बंदर के हाथ हीरा पड़ गया, खाकर देखा, फेंक दिया । हीरा रो पड़ा !! गुरु – मूल्य तभी है जब उसका ज्ञान हो तथा
Busy
Busy रहना बुरा नहीं, Busy मानना बुरा है, Busy जैसा व्यवहार करना बुरा है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
रत्नत्रय
सम्यग्दर्शन – पाप को पाप जानना । सम्यग्ज्ञान – पाप को पाप मानना । सम्यकचारित्र – पाप को पाप मानकर छोड़ना ।
समानुभूति
दूसरे की पीड़ा ख़ुद में महसूस करना । तड़पता देखता हूँ कोई शय (जीव), उठा लेता हूँ, अपना दिल समझकर ।
व्यवस्था
जितनी व्यवस्थाएँ होंगी, उतनी ही अव्यवस्थाएँ भी होंगी और आपकी अवस्था बदल नहीं पायेगी । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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