Month: October 2017

कर्म

कर्म बछड़े जैसे हैं, जो 100 गायों में छिपी अपनी माँ को ढ़ूँढ़ ही लेता है ।

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जीवन

जीवन एक “गणित” है। साँसें “घटती” हैं, अनुभव “जुड़ते” हैं । अलग अलग “कोष्ठकों*” में बंद हम बुनते रहते हैं “समीकरण**”, लगाते रहते हैं “गुणा-भाग”।

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डर

एक “माटी” का “दिया” सारी रात अंधियारे से लड़ता है.. तू तो “भगवान” का “दिया” (हुआ) है, तू किस बात से डरता है ! (सुरेश)

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नौकरी

भगवान ने गृहस्थ के षटकर्मों में खेती, शिल्प, लेखनादि बताये हैं पर नौकरी नहीं बतायी । ये तो दासता है, इसी को अधम चाकरी कहा

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म्लेच्छ

म्लेच्छ-खंड़ से आयीं पत्नियों की संतान 6-7 गुणस्थान तक ही जाती हैं, क्योंकि ये क्षेत्र-म्लेच्छ होते हैं।

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धर्म ध्यान

धर्म ध्यान से अभाव मिटे ना मिटे, पर स्वभाव परिवर्तित होने से समभाव ज़रूर आता है ।

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मरण / उद्यापन

इन अवसरों पर भेंट/भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिये, उनके परिवार/व्रती को देना चाहिए । मुनि श्री सुधासागर जी

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भाव / क्रिया

क्रिया साँचा है, भाव मूर्ति, विडंबना यह है कि हम साँचे को ही मूर्ति मानना शुरू कर देते हैं । (विपुल-फरीदाबाद)

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मंगल आशीष

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October 14, 2017

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