Month: January 2018
साधु / गृहस्थ
January 4, 2018
सूप बेकार को छोड़ता है – साधु । छलनी बेकार को ग्रहण करती है – गृहस्थ ।। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सोच
January 3, 2018
सम्यग्दृष्टि का सोच – पर पदार्थों को कहता अपनी है, पर मानता पर है । मिथ्यादृष्टि – कहता पर है, पर मानता अपनी है ।
शुद्धता / उपयोगता
January 3, 2018
बर्तन बाहर से मांजने पर शुद्ध दिखता है, पर उपयोगता अंदर की शुद्धता से ही होती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
समभाव
January 2, 2018
निगोदिया जीवों से भी सीख लें – वे भोजन भी साथ साथ समभाग लेते हैं । चिंतन
अशुचि भावना
January 1, 2018
शरीर की अपवित्रता का ध्यान, जीवन को पवित्र बनाने के लिये किया जाता है । मुनि श्री सुधासागर जी
आतंक / धर्म
January 1, 2018
आतंक धर्म कैसे हो सकता है ! क्योंकि धर्म तो आतंक को समाप्त करने के लिये होता है ।
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