Month: January 2018

साधु / गृहस्थ

सूप बेकार को छोड़ता है – साधु । छलनी बेकार को ग्रहण करती है – गृहस्थ ।। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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सोच

सम्यग्दृष्टि का सोच – पर पदार्थों को कहता अपनी है, पर मानता पर है । मिथ्यादृष्टि – कहता पर है, पर मानता अपनी है ।

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शुद्धता / उपयोगता

बर्तन बाहर से मांजने पर शुद्ध दिखता है, पर उपयोगता अंदर की शुद्धता से ही होती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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समभाव

निगोदिया जीवों से भी सीख लें – वे भोजन भी साथ साथ समभाग लेते हैं । चिंतन

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अशुचि भावना

शरीर की अपवित्रता का ध्यान, जीवन को पवित्र बनाने के लिये किया जाता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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आतंक / धर्म

आतंक धर्म कैसे हो सकता है ! क्योंकि धर्म तो आतंक को समाप्त करने के लिये होता है ।

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मंगल आशीष

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January 4, 2018