Month: February 2018
काललब्धि
इसको आगे बढ़ने में व्यवधान सांत्वना की दृष्टि से कहा है (जब कोई व्यहल हो रहा हो) । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
सम्यग्दर्शन के समय निर्जरा
जैसे मेहमान आते समय बहुत सुख होता है पर उनके टिक जाने पर सुख नदारत । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
इच्छापूर्ति
क्या गुरु/भगवान सामर्थ्यवान नहीं है ? माचिस उसी दीपक को जला सकती है, जिसमें तेल हो/जलने की योग्यता हो । मुनि श्री सुधासागर जी
पुण्य का भोग
प्राय: पाप का अर्जन करता है, पर पुण्य का भी । जैसे चक्रवर्ती, तीर्थंकर (साता का) मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
सिर झुकाना
सिर झुकाने की ख़ूबसूरती भी क्या कमाल की होती है.. धरती पर सर रखो और दुआ आसमान में क़बूल होती है । (मंजु)
गुरूपूर्णिमा/वीर शासन जयन्ती
गुरूपूर्णिमा का आगम में उल्लेख नहीं है । वीर शासन जयन्ती – जिस दिन भगवान महावीर की वाणी खिरी थी । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
मोहनीय का बंध
मोहनीय का उदय/सत्ता दसवें गुणस्थान तक (बाकी 3 घातिया जैसा), पर बंध तीनों से अलग, नौवें गुणस्थान तक ही जबकि बाकी तीनों का दसवें तक होता
साधु
साधु ब्राम्हण होता है – ज्ञान की अपेक्षा, साधु वैश्य होता है – हमेशा फ़ायदे का काम करता है , साधु क्षत्रिय होता है –
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