Month: April 2018
अकृत्रिम चैत्यालयों के दर्शन
विद्याधर/ऋद्धिधारी मुनि अकृत्रिम चैत्यालयों के दर्शन कर सकते हैं । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
भोग
भोगों को भोगने के भाव से किये गये तप से भी भोग मिलते हैं और वे भोगे भी भाव सहित जाते हैं । कर्म निर्जरा
आकर्षण
भगवान की भक्ति करते समय यदि कोई बैरी या प्रियजन दिख जाय तो क्या हमारा ध्यान उधर जाता है ? यदि हाँ तो यह भगवान
सासादन / मिश्र
सासादन-सम्यग्दृष्टि इसलिये कहा क्योंकि इसमें जीव सम्यग्दर्शन से ही आता है जबकि मिश्र में मिथ्यात्व से भी । चिंतन
दान
क्षुल्लक श्री गणेशवर्णी जी को एक सेठ ने बढ़िया दुपट्टा लाकर दिया । अगले दिन वर्णी जी ने वह एक गरीब बच्चे को दे दिया
पूजा
दिन विशेष पर विशेष भगवान की पूजा, यदि ग्रह काटने के उद्देश्य से तो दोष, कर्म काटने के लिये तो सही । लोभ/भय से ना
सम्बोधन
राम को ईशांतराज (भील) “तू” से संबोधन कर रहे थे । लक्ष्मण को अच्छा नहीं लगा । राम ने कहा – इन्होंने अपनी (भक्त) और
शुभ का फल
कूलर चलाने पर तुरंत कमरा ठंड़ा नहीं होता । पहले उसकी ठंड़ी अशुभ रूपी गर्मी को समाप्त करती है फिर शुभ रूपी ठंड़ी महसूस होती
पुण्य
पुण्य के लिये (फल भोगने) पुण्य करना हेय है । पापों से बचने तथा आत्मशुद्धि के लिये की गयी पुण्य क्रियायें उपादेय हैं । मुनि
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