Month: May 2018
आरती
बड़ों की आशिका अपनी ओर लें, ताकि उनके गुण/ज्योति हममें भी आयें, छोटों (दुल्हे आदि) की अपनी ओर से उनकी ओर करते हैं, ताकि हमारी
सम्यग्दर्शन
दर्शन = नज़र, सम्यग्दर्शन = नज़रिया । मिथ्यादर्शन = यथायोग्य, सम्यग्दर्शन = यथावत । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
गुणस्थान
1 से 4 इंद्रिय का उदय दूसरे गुणस्थान तक यानि 2 गुणस्थान में मरकर जीव 1 से 4 इंद्रियों में जन्म ले सकता है ।
एक और एक ग्यारह
मकान के खंभे में लोहे की छ्ड़ें अकेले सीधी खड़ी भी नहीं रह पातीं, पर सीमेंट के साथ ऊँची ऊँची मंज़िलों को बना देती हैं
समाज सेवा
समाजसेवा क्यों करें ? समाज की वज़ह से ही हम असमाजिक तत्व बनने से बचे हुये हैं, इसीलिये समाज की सेवा करें । मुनि श्री
परम औदारिक
परम औदारिक शरीर की छाया नहीं पड़ती है, प्रतिबिंब ही (शीशे में) पड़ सकता है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
भ्रम और उपकार
पेड़ में मनुष्य के आकार की कल्पना करके उससे उपकार की अपेक्षा, भ्रम टूटने के साथ समाप्त हो जाती है । ऐसे ही आत्मज्ञान हो
समवसरण में गणधर
सारे गणधरो की पीठकायें गंधकुटी के चारों ओर होती हैं । दिव्यध्वनि काल के अलावा अपनी अपनी दिशा में बैठे गणधरों से 12 कोठे वाले
आकर्षण
अज्ञानी का आकर्षण नवीन और विविधता की ओर होता है, इसीलिये उनमें अस्थिरता रहती है । ज्ञानी का पुरातन और स्थाईत्व की ओर रहता है
रागद्वेष और विरक्ति
आपको किन्ही दो के बीच में राग दिख रहा है तो मानना आपको द्वेष है, और यदि द्वेष दिख रहा है तो आपका राग छिपा
Recent Comments