Month: September 2018
उत्तर पुराण
उत्तर पुराण यानि बाद में लिखा गया पुराण (आदि/महापुराण के बाद) । आर्यिका श्रेयनंदनी जी
दुर्जन
दुर्जन वह नहीं जो बुरे काम करे, बल्कि वह जो समझाने पर समझे नहीं । मुनि श्री सुधासागर जी
आत्मा
आचार्य श्री कुंदकुंद ने आत्मा को “राजा” कहा है भगवान नहीं, क्योंकि राजा कर्ता/भोग्ता होता है, भगवान नहीं । उनके एक हजार वर्षों बाद आचार्य
धर्मात्मा और निर्धनता
प्राय: धर्मात्मा निर्धन क्यों होते हैं ? समझदार माँयें बच्चों को उतना ही देती हैं जितने में उनका पालन हो सके, ताकि वे बिगड़ ना
वेदनीय की स्थिति
असाता का उत्कृष्ट उदय 33 सागर (7वें नरक में), पर इस अवधि में साता का भी उदय आ सकता है, परन्तु जघन्य होने से उसका
वक़्त
वक़्त अच्छा/बुरा नहीं होता, अच्छे/बुरे कर्मोदय को हम अच्छा/बुरा वक़्त कहने लगते हैं ।
आचरण
अंजन देखने से नहीं, लगाने से आँख अच्छी होगी । शास्त्रों को पढ़ने भर से नहीं, आचरण में लाने से लाभ होगा । आज नहीं
भाषा
हित, मित, संदेह रहित* होनी चाहिये । तत्वार्थसूत्र टीका – 202 *अति प्रशंसा वाली भाषा प्रिय तो लगती है, पर संदेह रहता है ।
बारह भावना
बारह भावना में मोक्ष क्यों नहीं ? समिति, गुप्ति आदि धार्मिक क्रियाओं से संवर; तपादि से निर्जरा और इनकी पूर्णता का नाम ही तो मोक्ष
दया / कृपा
गुरु शिष्यों पर/ डॉक्टर मरीज़ों पर दया नहीं, कृपा करते हैं । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
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