Month: September 2018

निगोद

निगोद में जीव पापोदय/पुरुषार्थ की कमी से नहीं, स्वभाववश रहता है, जैसे निबोली से नीम का पेड़ ही बनता है । मुनि श्री समयसागर जी

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धनोपार्जन

धन से क्या क्या मिल सकता है, इस पर तो दृष्टि रहती है, पर धन आने से क्या क्या खो जाता है, इसका ध्यान नहीं

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रागद्वेष

रागद्वेष औदायिक भाव हैं । इनके लिये बाह्य निमित्त (मन भी हो सकता है) आवश्यक है । मुनि श्री समयसागर जी

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भगवान का प्रभाव

असाता/पापोदय की तपती धूप से भगवान रूपी घना वृक्ष स्वत: छाया देता है, मांगनी नहीं पड़ती है । क्षु. श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी

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झूठ का फल

वसु राजा ने झूठ बोला, नरक गया; सत्यघोष ने भी झूठ बोला, नरक नहीं गया, ऐसा क्यों ? वसु के झूठ से लाखों जीवों की

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झुकना

अगरबत्ती को भी (जलने) सुगंध बिखेरने के लिये झुकना पड़ता है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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स्वाध्याय

स्वाध्याय परम-तप तो कहा है पर असंख्यात गुणी निर्जरा नहीं क्योंकि बाह्य क्रिया है, अंतरंग में एकांत पनप सकता है, घमंड़ हो सकता है ।

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संतुलन

तेज चलने वाले वाहनों से धुँआ/धूल भी ज्यादा निकलती/उड़ती है, पेट्रोल भी अनुपात से ज्यादा खर्च होता है ।

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मोक्ष

मोक्ष में प्रमुखता तप की नहीं (तप तो मिथ्यादृष्टि भी कर लेता है), प्रमुखता तो वैराग्य की होती है । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी

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बोल

शब्द का भी अपना एक स्वाद है, बोलने से पहले स्वयं चख लीजिये, अगर खुद को अच्छा नहीं लगे तो दूसरों को कैसे अच्छा लगेगा

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मंगल आशीष

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