Month: March 2019
जिओ और जीने दो / संलेखना
जिओ और जीने दो की सर्वोच्च साधना संलेखना में ही भायी जाती तथा की जाती है । (जीवों की रक्षा ना कर पाने पर देह
प्रतियोगिता/स्वाध्याय
प्रतियोगिता के लिये किया गया ज्ञान स्वाध्याय में नहीं आता क्योंकि प्रतियोगिता में आदर भाव नहीं होता । मुनि श्री सुधासागर जी
सत्संग
यदि व्यक्ति विवेकी है तो उसे सत्संग की क्या आवश्यकता ? इस प्रश्न के ज़बाब में गुरु ने जानवरों को बाँधने वाले खूँटे को हिलाने
फूलमाला
एक व्यक्ति ने भावावेश में आकर आ. श्री विद्यासागर जी के गले में फूलों की माला पहना दी । आ. श्री ने आँखें बंद कर
Relationship
Every Relationship is like a Glass. A Scratch on any side will reflect on other side. So always handle everyone’s feelings with Care & Respect.
प्रवचन आदि
प्रवचन – सामान्य, सबके लिये, वाचना – स्वाध्याय कराना (विशेष ग्रंथ का) देशना – गुरु के द्वारा तत्वज्ञान देना/दीपक का प्रकाश, देशना लब्धि – गुरु
समर्पण
समर्पण = सम(सत्य)+अर्पण । अर्पण का दर्पण से गहरा संबंध है, दर्पण यानि देखकर कर चलना । बीज समर्पण करता है तो वटवृक्ष, बूँद <
वेद
वेद को (नो) कषाय में क्यों लिया गया ? वेद से कषाय और कषाय से वेद के भाव आते हैं । द्रव्य वेद से भी
भाग्य भरोसे
आज गृहस्थ तथा साधु दोनों ही भाग्य भरोसे जी रहे हैं । फ़र्क सिर्फ इतना है कि गृहस्थ रो रो कर जीते हैं, साधु हँस
परिग्रह
परिग्रह संज्ञा तथा व्रत में फर्क ? परिग्रह-संज्ञा… इच्छा है, व्रतियों के भी होती है । परिग्रह-व्रत… व्रतियों के ही, अणुव्रतियों के सीमा में, महाव्रतियों
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