Month: April 2019

कर्म-सिद्धांत

एक सेवक ना आये, डाँटो; दूसरा ना आये, प्यार से कारण पूछो; तीसरा ना आये, तो पहले से क्षमा माँगो (पापोदय मेरा था, डाँट तुझे

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आत्मा से कर्मबंध

आत्मा से 8 प्रकार के कर्म तो हर समय बंधे रहते हैं, पर नोकर्म/भाषा/मनोवर्गणायें कभी बंधी रहती हैं कभी नहीं, जैसे विग्रहगति, एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, असंज्ञी

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भाव प्रधानता

भाव प्रधानता का मतलब यह नहीं कि भावों से कार्य की पूर्णता कर लें, क्रिया की जरूरत ही नहीं, बल्कि यह कि… हर क्रिया भावपूर्ण

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चक्रवर्ती/व्रत

तीर्थंकर चक्रवर्ती व्रती होते हैं, भरत चक्रवर्ती ने बाद में समवसरण में व्रत लिये थे । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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नरक में धर्मध्यान

नरक में चौथे गुणस्थानवर्ती जीवों के कभी कभी धर्मध्यान होता है जैसे सम्बोधन के समय । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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Future / Past

How can you see the FUTURE, if you live in PAST. (क्योंकि उपयोग तो एक जगह ही लगेगा)

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आर्यिका/ऐलक की निर्जरा

आर्यिका की निर्जरा हमेशा ऐलक से ज्यादा होती रहती है । मुनि बनने के सम्मुख खड़े ऐलक की, आर्यिका से अधिक होती है । पं.

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चाहत

🌺🌼🌿कुछ तो चाहत होगी, इन बूँदों की भी; वरना… कौन छूता है ज़मीं को, आसमाँ पर पहुँच कर !🌸🌻🍃 🌹🌹 (मंजू) 🌹🌹

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मंगल आशीष

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April 15, 2019