Month: February 2020
समभाव / सम्यक भाव
सम भाव = सत्य/असत्य में तटस्थ, संसार में उपयोगी । सम्यक भाव = असत्य का परिहार, परमार्थ में उपयोगी । मुनि श्री सुधासागर जी
तथास्तु / सदास्तु
गुरु वाचन कर रहे हों तो “तथास्तु” (ऐसा ही हो) कहें, साधर्मी के लिये “सदास्तु” । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आरती
आरती में दीपक को चारों ओर घुमाने का अभिप्राय – पूज्य के सम्पूर्ण गुणों को आत्मसात करना ।
श्रुतज्ञान
पाँचों ज्ञानों में सिर्फ श्रुतज्ञान ही स्वार्थ/ परमार्थ और द्रव्य/ भावश्रुत के भेद से 2 प्रकार का होता है । द्रव्यश्रुत ज्ञान जब भावश्रुत रूप
घ्रणा
कुबड़े से घ्रणा करने में बहुत दोष है, क्योंकि उसके शरीर से घ्रणा की जा रही है । हत्यारे से घ्रणा करने में कम दोष
रसी
शास्त्रों/श्रावकाचारों में रसी का कथन नहीं है । लगता है व्रतियों को आहार कराने में रसी के नियम सुविधा देते हैं, जैसे रविवार को भोजन
भावना / आकुलता
भावना भाना आवश्यक है, लाभकारक है , पर भावना आकुलता रहित होनी चाहिये वरना हानिकारक होगी ।
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