Month: May 2020
जीओ और जीने दो/उपकार
जीओ और जीने दो में स्व-चतुष्टय है, सब अपने अपने से जी रहे हैं, मैं मारूँगा नहीं, यह एक सिद्धांत है । उपकार में ->
परम्परा
मनुष्य यंत्रों की सहायता लेकर भी भटक जाता है । पक्षी हजारों किलोमीटर बिना यंत्रों के अपने गंतव्य पर पहुँच जाते हैं, क्योंकि वे लीक/परम्परा
बात मनवाना
मारीच – प्रथम तीर्थंकर का नाती, भावी तीर्थंकर, चौथे काल का विशुद्ध वातावरण, चक्रवर्ती का बेटा ! उसको तीर्थंकर नहीं समझा पाये, हमारी/तुम्हारी औकात क्या
आरोग्यता
रोगों के आने के रास्तों को बंद करना ही आरोग्यता है । रास्ते बंद करने का तरीका ? मन,वचन,काय की पवित्रता से । आचार्य श्री
आत्मानुभूति
आत्मानुभूति तो आज भी है, हम सबको है पर अशुद्ध-आत्मा की है । जैसे काली मिर्च का स्वाद ठंडाई में । आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
ह्रीं
ह्रीं का प्रयोग संसार और परमार्थ दोनों क्षेत्र में होता है, यह असीम है, बाकी सीमित । इसमें सिर्फ “ह” का प्रयोग है, अन्य बीजाक्षरों
धर्म-चर्चा
धर्म-चर्चा से जरूरी नहीं कि आप आगे बढ़ेंगे, पर इतना अवश्य है कि आप पीछे नहीं जायेंगे ।
गुणस्थान
जीवनपर्यंत सिर्फ पहले और चौथे में ही रहा जा सकता है, पांचवें में क्यों नहीं ? क्योंकि पांचवाँ जन्म से नहीं हो सकता, कम से
दुखाभास
सुखाभास (सांसारिक/इंद्रिय सुखों को सुख मानना) की तरह दुखाभास भी होता है । दुखाभास = 1. दुखों को ओढ़ लेना 2. इच्छित वस्तु का ना
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