Month: June 2020
परिणाम/परिणमन/परिणति
परिणाम = भाव/स्वभाव परिणमन = परिणामानुसार क्रिया परिणति = परिणमन का परिणाम मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
शल्य
1. मिथ्या-शल्य = मिथ्यात्व को जानते हुये भी छोड़ ना पाना 2. माया-शल्य = अंदर कपट, बाहर सरलता का नाटक 3. निदान-शल्य = भोगों का
दिमाग / एकाग्रता
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा – E = mc2 इसे शिक्षा में घटित करें – E = Education में, M = Mind, C = Concentration यानि
जलकाय
प्रासुक जल करने में आरंभिक हिंसा स्थावर जीवों की है, जो श्रावक हर क्रिया (भोजनादि) में करता ही रहता है । पर श्रावक हिंसा करने
पर्यावरण
पर्यावरण की रक्षा की उत्कृष्ट साधना जैन संतों में दिखती है— साधनों का कम से कम प्रयोग; अधिक से अधिक रक्षा, यदि आहार लेते समय
पापोदय
पापोदय को शांत करने/शांति पाने के लिये – 1. अपाय-विचय = करणानुयोगानुसार 2. उपाय-विचय = चरणानुयोगानुसार मुनि श्री सुधासागर जी
सुधारने की सीमा
सुधारने का प्रयास इसलिये करते हैं ताकि हँसने का वातावरण बने । यदि इस प्रयास में हमको रोना आ जाये तो सुधारना बंद कर दो
संक्लेश
संक्लेश से बचने के लिये… निमित्त-बुद्धि छोड़कर उपादान-बुद्धि/दृष्टि अपनाओ । मुनि श्री सुधासागर जी
चंदन / केशर
ललाट पर टीका चंदन का ही लगाना चाहिये केशर का नहीं, क्योंकि चंदन ठंडी होती है और केशर गर्म ।
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