Month: July 2020
दान-तीर्थ
दान-तीर्थ राजा श्रेयांस ने शुरू किया । हालाँकि भरत चक्रवर्ती भी बहुत दान किया करते थे, पर राजा श्रेयांस के तीर्थंकर को आहार-दान को ज्यादा
स्वाध्याय
भोजन का लाभ पचाने पर ही, स्वादिष्ट/गरिष्ठ भोजन में स्वाद तो आयेगा, लाभ/शक्ति नहीं । स्वाध्याय के साथ भी ऐसा ही है ।
प्रशंसा
सम्यग्दृष्टि प्रशंसा नहीं चाहता, वह तो अपने को पापी/अज्ञानी कहकर/मानकर, सर्वगुणवान की प्रशंसा करता है/सुनना चाहता है, तभी वैसा बन पायेगा । आचार्य श्री विद्यासागर
दुर्भाग्य
दुर्भाग्य को जीतना चाहते हो तो … सौभाग्य और दुर्भाग्य में समता भाव रखना/झेलना सीखो । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
कर्मोदय / उदीरणा
कर्मोदय को तो रोक नहीं सकते, उदीरणा को तो रोक सकते हैं । परोसी खीर कर्मोदय है, उस पर दाल का (मसाले वाला) छोंक उदीरणा,
मन
आरंभ हो और अंत न हो, मन इतना भी स्वतंत्र न हो…; व्यथित हो और शब्द न हो, मन इतना भी परतंत्र न हो…। 🙏🏻(सुरेश)🙏🏻
सूतक
सूतक की अवधि में व्यक्ति प्रवचन कक्ष की चटाई पर बैठ सकता है । मुनि श्री सुधासागर जी
धर्म का प्रवाह
धर्म का प्रवाह बहुत महत्वपूर्ण है, पर यदि उपयोग नहीं किया तो वह बह जायेगा । आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
पूजादि
पूजादि क्रियायें पापों का प्रक्षालन है । गृहस्थी में ऐसी पाप क्रियायें होती ही रहती, इसलिये गृहस्थों को पूजादि आवश्यक कहा है, साधुओं को नहीं
धर्म
भोजन दो तरह से – पथ्य रूप = ये खाना/ये नहीं खाना, स्वभाव रूप = स्वस्थ अवस्था में, आनंद आता है । इसी तरह –
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