Month: August 2020
उपादान / निमित्त / पुरुषार्थ
उपादान/निमित्त/पुरुषार्थ का आपस में कैसा संबंध होता है ? उपादान में कर्म घटित होता है, निमित्त कर्म-बंध तथा कर्म-फल में सहायक, पुरुषार्थ दोनों को मिलाता
उत्तम शौच धर्म
शौच = पवित्रता / लोभ का उल्टा शौचता आती है संतोष से । संतोष व असंतोष में फ़र्क सिर्फ “अ” का, “अ” = अभावोमुखी-दृष्टि ।
सम्यग्दर्शन/सम्यकचारित्र
यदि सूर्य का प्रकाश नहीं आ रहा है तो सूर्य का प्रकाश बढ़ाने का प्रयास करोगे या उसके या उसके सामने आया अवरोध हटाने का
उत्तम आर्जव धर्म
आर्जव धर्म = मायाचारी का न होना । 4 के साथ तो छल कभी भी न करें … 1) स्वयं से – हर छल में
पूजा / स्वाध्याय
पूजा को पहले रखा, स्वाध्याय को बाद में । पूजा करने से राम जैसी प्रगति, स्वाध्याय करने से रावण जैसी परिणति भी हो सकती है,
उत्तम मार्दव धर्म
अहंकार का न होना ही मार्दव धर्म है । अहंकार रूपी पर्वत से जब नदी नीचे उतरती है तभी शांति के सागर में मिलकर विराट
भय
मिथ्यादृष्टि संसार में भयभीत रहता है, सम्यग्दृष्टि संसार से । मुनि श्री संस्कारसागर जी
पर्यूषण / उत्तम क्षमा
पर्यूषण में Rituals से Spiritual की ओर बढ़ना है; Spiritual यानि उतार/ चढ़ाव में स्थिरता । क्षमा यानि धरती जैसी सहिष्णुता । 4 स्थितियों में
उत्पाद / व्यय
घड़े का टूटना तथा कपाल का उत्पाद एक ही समय में होता है । पर दोनों पर्याय एक समय में भी नहीं तथा काल भेद
हिंसा
पेड़ आदि को काटने में हिंसा कम, बकरे/मुर्गे में ज्यादा, क्योंकि हिंसा आत्मा की नहीं, प्राणों (इंद्रियाँ,मन,वचन,काय आदि) की होती है । पेड़ में 4
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