Month: December 2020
सीता / रावण
सीता का आखिरी भव 22 सागर का चल रहा है, पर रावण अनेकों भव लेकर तीर्थंकर बनेंगे, तब सीता का जीव उनका गणधर बनेगा और
खंडित मूर्ति
मंदिर परिसर में खंडित मूर्तियाँ नहीं रखनी चाहिये । उन्हें संग्रहलयों में रख देना चाहिये । मुनि श्री सुधासागर जी
नोकर्म
शरीर को नोकर्म कहते हैं, नोकर्म, कर्म की तरह राग-द्वेष में कारण हैं । शरीर-नामकर्म, 8 कर्मों में ही आते हैं । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
विज्ञान / आधुनिकता
ये दोनों लुभावने/आकर्षक तो हैं, पर स्थिर और Reality नहीं हैं ।
अवधि/मन:पर्यय ज्ञान
अवधि-ज्ञान की सीमा ज्यादा, मन:पर्यय-ज्ञान की सीमा कम क्यों होती है ? लोहे की तराजू क्विंटल में नापती है,ग्रामों को नहीं नाप पाती; सोने/हीरे की
सूक्ष्म जीवों की रक्षा
सिर्फ़ अनर्थ-दंड* से बचकर ही गृहस्थ एकेंद्रिय जीवों** की रक्षा कर सकते हैं । * बिना (अर्थ)ज़रूरत की क्रियायें । ** पेड़/पौधे, जल/वायु प्रदूषण
मोक्ष और मार्ग
सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र मोक्ष-मार्ग हैं, मोक्ष नहीं/ मोक्ष की राह दिखाने के लिये Torch हैं । खोई हुयी वस्तुऐं ढ़ूढ़ने के लिये हैं, बिना Torch
ज्ञात / अज्ञात
पंडित लोग प्राय: अज्ञात/अंदर के विषयों की चर्चा करते हैं जैसे आत्मादि, जबकि साधुजन ज्ञात/बाह्य क्रियाओं की । क्योंकि पंडित प्राय: आचरणों से दूर रहते
धर्म
धर्म दर्द देता है, यदि सुख मिल रहा है तो वह धर्म है ही नहीं, यही कारण है कि प्राय: लोगों के जीवन में धर्म
गुरु / साधु
श्रावकों का कल्याण करते समय – गुरु, अपना कल्याण करते समय – साधु । निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
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