Month: December 2020
पुण्यार्जक
भोजन व्यवस्था के पुण्यार्जक को अपने मित्रों/रिश्तेदारों को भोजन कराने नहीं बुलाना चाहिये । यदि बुलाते हो तो उनके भोजन के लिये धन अलग से
Change
The more things change, the more they remain the same. (Gaurav)
सत्य
सत्य तो मुख्यतः ख़ुद के साथ बोलने के लिये होता है । जैसे सबके लिये – “ये मेरा मकान है”, अपने लिये – “मकान किसका
नियति और हम
एक निवाला पेट तक पहुंचाने का…नियति ने क्या ख़़ूब इंतजाम किया है… अगर गर्म है, तो हाथ बता देते हैं ; सख़्त है, तो दांत
दर्शन / चारित्र
सम्यग्दृष्टि सत्य को जान लेता है पर अविरत अवस्था में, उस पर चल नहीं पाता । चारित्र-मोहनीय मंद/समाप्त होने पर अनुसरण भी करने लगता है
शब्द / अनुभूति / मर्यादा
जो कह दिये, वह शब्द थे …. जो नहीं कह सके, वह अनुभूतियां थीं ! और…. जो कहना है, फिर भी नहीं कह सकते, वह
अर्थ/व्यंजन पर्याय
सिद्धों में… व्यंजन-पर्याय उनके आकार और प्रदेशत्व की अपेक्षा, अर्थ-पर्याय अगुरुलघु गुण से ।
रिश्ते
💦🌴💦🌴💦🌴💦🌴 रिश्तों में झुकना कोई अज़ीव बात नहीं, सूरज भी तो ढल जाता है, चाँद के लिए ! जीवन के कुछ संबंध ऐसे होने चाहिए
प्रभु-कृपा
मांगने पर तो मूल्यहीन वस्तुयें ही मिलतीं हैं जैसे भीख । बिनमांगे मूल्यवान जैसे वृक्ष से छाया/ अग्नि से उष्णता/ वर्फ से शीतलता/ फूल से
तत्त्वार्थसूत्र
श्रावकों के लिये मुख्यत: सातवें अध्याय तक, दान की चर्चा करके समाप्त । आगे मुख्यत: मुनियों के लिये, हाँ ! श्रावक अभ्यास कर सकते हैं
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