Month: March 2021
अनाहार / अनाहारक
अनाहार – बिना आहार । अनाहारक – आहार न लेने की स्थिति जैसे एक समय से अधिक की विग्रहगति में । चिंतन
कर्म / पुरुषार्थ
कर्म….. सिर्फ़ मिलाने का काम करता है । पुरुषार्थ ….. संम्बधों में नज़दीकियां या दूरियाँ बढ़ाने का काम….. व्यक्ति स्वयं करता है । (अनुपम चौधरी)
द्वैत / अद्वैत
द्वैत….. दो का अलग-अलग अस्तित्व स्वीकारना जैसे आत्मा और शरीर । अद्वैत… दो का एक अस्तित्व मानना जैसे अपनी आत्मा और शरीर को एक मानना
दोष
दोष दूसरे बतायें तो Sorry से काम चल जायेगा; ख़ुद महसूस करें तो प्रायश्चित लें । चिंतन
कषाय
क्रोधादि चारों कषाय का उदय तो हर समय रहता है पर हानि तभी होती है जब उनमें प्रवृत्ति/उपयोग लग जाता है । विचार यह करना
परम्परा / मौलिकता
मौलिकता का मतलब परम्पराओं को तोड़ना नहीं, केवल लीक से हटकर आगे बढ़ना, अच्छे को अपनाना, बाकी से सुरक्षित दूरी रखना है । मुनि श्री
शील
शील की 9 बाढ़ हैं – (मन, वचन,काय) × (कृत, कारित, अनुमोदना) (10 धर्मों में, पहले 9 धर्मों को भी शील/ ब्रम्हचर्य की बाढ़ कहा
पूजादि
पूजादि धर्म नहीं, धर्म के साधन/आवश्यक हैं जैसे भोजन बनाना । दयादि धर्म हैं जैसे भोजन करना । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
छत्र चढ़ाना
तीर्थ-स्थानों पर छत्रों को बार बार चढ़ाने में दोष नहीं है क्योंकि वे स्थापित किये जाते हैं जैसे मूर्ति को स्थापित (अभिषेक के बाद) किया
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