Month: September 2021

मार्दव धर्म

मान निम्न रूपों में आता है… अहंकार तिरस्कार ईर्षा भाव के रूप में क्या मान करना स्वाभाविक नहीं है ? नहीं, अज्ञानता का परिणाम है । अपनी

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उत्तम क्षमा धर्म

यह त्योहार तात्कालिक या ऐतिहासिक नहीं; पारमार्थिक है, शाश्वत है। सामर्थ्य होने पर भी गुस्सा न करने को क्षमा कहते हैं। कारण: अपेक्षाओं और आकांक्षाओं

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क्षमा

  आज का दिन क्षमा का है । धर्म की शुरूआत क्षमा से ही होती है – सब जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सब

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आयुकर्म की आबाधा

आयुकर्म की आबाधा = जितनी भुज्यमान(वर्तमान-भव) आयु शेष रहने पर बध्यमान(पर-भव) की आयु बंधे, अंतरमुहूर्त की बध्यमान की आबाधा 100 साल हो सकती है और

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गुरु दर्शन

जिन-जिन वस्तुओं/ सुविधाओं की कमी में श्रावक दु:खी होता है, गुरु उन-उन के अभाव में सुखी रहकर दिखाता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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चारित्र-मोहनीय

कषायों के विचार रूप विषयों को भोगने की इच्छा का नाम चारित्र-मोहनीय है । मुनि श्री अमितसागर जी

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परिग्रह

जलाशय के किनारे बड़े पेड़ भी सूखने लगते हैं । (परिग्रही आसपास वालों को भी पनपने नहीं देते) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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विषय / कषाय

आत्मा के लिये बड़ा अहितकारी है क्या, विषय या कषाय? कषाय, विषय तो मुनिराजों के भी रहते हैं जैसे ठंड़ी हवा का स्पर्श। पर विषयों

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मंगल/सुंदर रूप

तपस्वी का रूप मंगलकारी होता है और यदि सुंदरता भी हो तो सोने में सुहागा जैसे आचार्य श्री विद्यासागर जी का ।

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धर्म के भेद

1. उपासना – पूजादि 2. नैतिकता – ईमानदारी/कर्त्तव्य निष्ठादि 3. आध्यात्म – अपने सच्चे स्वरूप को समझना कि मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ और वैसा

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मंगल आशीष

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