Month: October 2021
भगवान अकर्ता
सम्यग्दृष्टि भगवान को अकर्ता मानता हुआ भी, असाता हटने पर भगवान का ही आभार क्यों मानता है ? ताकि उसे अपने पुरुषार्थ पर घमंड न
नियंत्रण
मौसम के अनुसार हम पंखे की Speed को नियंत्रित करते रहते हैं। क्रोधादि को क्यों नहीं करते ? जबकि ताकतवरों के सामने/ ग्राहकों के सामने
अनंत
अभव्य अनंत, भव्य-अनंतानंत; भूत अनंत समयों का, भविष्य – अनंतानंत समयों का। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मन / चित्त
मन बाहरी, इसीलिये बाहरी वस्तुओं से प्रभावित हो जाता है। चित्त अंतरंग, संस्कार चित्त पर ही होते हैं, यह Hard Disk है, भाव चित्त से
व्रत / उद्यापन
श्री द्रव्यसंग्रहानुसार – व्रतों को अच्छे से निभाने से आधा लाभ/पुण्य, उद्यापन करने पर पूरा लाभ। यदि उद्यापन न कर सको तो व्रतों को दुगने
संतोष
मनुष्य जो पाता है, सो भाता नहीं, इसलिये साता आता नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
जीवत्व
जीवत्व पारिणामिक भाव है, जो जीता था/है/रहेगा। पर यह तो गति से गत्यंतर होने पर – कभी 4 प्राण कभी 10, बदलता रहता है ?
प्रेरक-कथायें
शास्त्रों में प्रेरक-संस्मरण अणुव्रतियों के ही आये हैं, महाव्रती के नहीं। कारण ? मुनि तो स्व-प्रेरित होते हैं, उनको कथाओं के सहारे की ज़रूरत नहीं
भाव शुद्धि
1. समभाव – सब जीवों पर । 2. ममभाव – कम करें । 3. प्राणायाम – शरीर शुद्धि से भाव शुद्धि भी । मुनि श्री
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