Month: December 2021
मन
औकात/महत्व मूल्य से आंका जाता है – सोना व पीतल दोनों पीले, पर सोना तिजोरी में, पीतल का पीकदान। मन का मूल्यांकन करें – सम्यग्दर्शन
संस्कृति और साहित्य
संस्कृति बनाये रखने में समीचीन साहित्य की प्रमुख भूमिका होती है। परन्तु वह साहित्य जीव के लिये उपयोगी होना चाहिये, उसके उपयोग से ही संस्कृति
ग्रंथ
मूल ग्रंथकर्ता – तीर्थंकर(गंगा, वीर हिमाचल से निकसी)। उत्तर ग्रंथकर्ता – गणधर/श्रुतकेवली। उत्तरोत्तर ग्रंथकर्ता – आचार्यजन। गंगा गणधर के कुंड में गिरी, आज बूंद के
शिक्षा
लौकिक शिक्षा का अंत नहीं, धार्मिक शिक्षा से बहुत कम में बहुत काम हो जाता है; इसे रटना नहीं पड़ता, सिर्फ समझना होता है ।
समझौता
10 जनवरी’80 में 4 दीक्षायें होनी थीं, सो 4 पीछियों का इंतज़ाम किया गया। 5वें सुधासागर जी आ गये तो आचार्यश्री ने 4 की 5
कर्म-फल
कर्म किया तो फल मिलेगा। सेवक ने नहलाया तो सेवक को रोटी मिलेगी। सेठ को नहलाया तो बची रोटी, भगवान को तो पहली रोटी, चुपड़ी,
उपाय-विचय
उपाय-विचय (उपाय चिंतन)… इससे तीर्थंकर-प्रकृति का बंध होता है। आत्मबोध से ही सबको दु:खों से छुटकारा मिलता है। सोहम् = सः + अहम् = वह
स्थिरता
ज्यादा ऊंचाई पर बादल कम गतिशील होते हैं, नीचे वाले ज्यादा दौड़ते दिखते हैं। यही सिद्धांत मनुष्यों में भी लगा लेना। चिंतन
भाग्य / पुरुषार्थ
शकुनी जुए के भाग्य भरोसे जीवन चलाना चाह रहा था, हश्र ! मैना सुंदरी ने सिर्फ पूजा/विधान ही नहीं, आठ दिनों तक दानादि करके पुण्य/दुआयें
समर्पण
समर्पण यानि अपने को आराध्य के लिये मिटा देना। मिटाना यानि अपने मन को आराध्य के अनुसार चलाना। गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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