Month: December 2021
ध्यान
ध्यान में ना तो णमोकार, ना ही भगवान का नाम लिया जाता है। सामायिक में ये नाम लिये जाते हैं तथा गृहस्थ लोग हर समय
पंचाश्चर्य
पंचाश्चर्य भक्तों के पुण्य से होता है क्योंकि वही मुनि जब दूसरे भक्त के यहाँ आहार लेते हैं तब पंचाश्चर्य नहीं होते । बरसे हुये
परिग्रह
हाथ में ज्यादा पत्ते होने से खिसकने की संभावना ज्यादा हो जाती है (उतना ही रखो जितना सम्भाल सकते हो) । आचार्य श्री विद्यासागर जी
नाम कर्म वर्गणायें
शरीर को Maintain करने के लिये भगवान वातावरण से शरीर नाम कर्म वर्गणायें लेते हैं । हम मुख्यत: यह काम कवलाहार से करते हैं ।
सुख
सुख अपनों में ही नहीं, बाहर वालों में भी । दूसरों को सुखी बनाने का सुख, अपने सुख से ज्यादा होता है । पूर्ण सुख
संसार में व्यवहार
संसार में हम सब सज़ायाफ़्ता कैदी हैं । संसार से भागे तो जेलर सज़ा बढ़ा देगा । कर्म रूपी जेलर से व्यवहार बना के रखो,
भ्रम
धरती/आसमान मिलते दिखाई देते हैं, पर हैं नहीं । आत्मा/शरीर भी एक रूप दिखते हैं, पर हैं नहीं । अज्ञानी इस भ्रम में शरीर को
परीक्षा-प्रधान
आचार्य समन्तभद्र जी ने आत्म-मीमांसा ग्रंथ में ना तो मंगलाचरण किया ना ही भगवान को नमस्कार करके ग्रंथ का प्रारंभ किया । सीधे भगवान, आत्मा
शरीर
शरीर भोजन से ही नहीं वातावरण से भी ग्रहण करके स्वस्थ रहता है । बचपन में ग्रहण ज्यादा, खर्च कम । उम्र के साथ ग्रहण
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