Month: January 2022
आ. श्री शांतिसागर जी
आचार्य श्री शांतिसागर जी आचार्य श्री ने जब दक्षिण से उत्तर की ओर विहार किया, तो उनसे अनुरोध किया गया कि उत्तर में परिस्थितियाँ अनुकूल
अवस्थायें
अवस्थाएं…. 1. सुप्त – सुधबुध नहीं रहना। ज़्यादातर लोग इसी अवस्था के होते हैं। 2. स्वप्न – नयी दुनिया की रचना। 3. जाग्रत – जीवन
अदृश्य
कर्म व आत्मा दोनों अदृश्य। कर्म को ही विधि कहा; सारा खेल कर्म का ही। इसीलिये कहते हैं- “विधि का विधान”। हाइकू: “अदृश्य विधि ही
जमीन से जुड़ना
अंकुर बड़े-बड़े तूफानों में भी नहीं हिलता क्योंकि जमीन से जुड़ा रहता है। बड़े-बड़े वृक्ष छोटे-छोटे तूफानों में हिल जाते हैं/गिर जाते हैं क्योंकि वे
संयम
तुम्हारा संसार की ओर देखना असंयम; संसार का तुम्हारी ओर देखना संयम है। मुनि श्री सुधासागर जी
लोभ
लोभ = किसी वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा। चीजें भाएं, तो बुराई नहीं, पर वे चीजें लुभायें नहीं। जैसे किसी का सुंदर मोबाइल देखकर
भोजन
खाना – खाया जाता है – तामसिक – साधारणजन करते हैं। भोजन – किया जाता है – राजसिक – रुचि के अनुरूप – संयमी। आहार
धर्मी / आचरणवान
ज़रूरी नहीं कि धर्मी आचरणवान हो ही। हरी बत्ती पर गाड़ी चलाए, धर्मी; लाल पर रोके, आचरणवान। आप धर्मी हों, तो पाप करना छोड़ दें;
जिनवाणी
जिनवाणी को भी श्रुतज्ञान कहते हैं हालाँकि वे अक्षर हैं, कारण को कार्यरूप श्रुतज्ञान कहा है। हालाँकि श्रुतज्ञान तो ज्ञानावरण के क्षयोपशम से होता है।
संस्कार
बच्चों को बड़ों से शिकायत रहती है। होनी भी चाहिये; तभी तो बड़े बच्चों से शिकायत कर सकेंगे। पहले राजा तक अपने बच्चों को सुविधाओं
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