Month: January 2022
भाग्य / पुरुषार्थ
आदिनाथ भगवान के आंगन में कल्पवृक्ष बाकी थे, पर उन्होंने तीर्थंकर-राहत-कोष से किसी को कुछ नहीं दिया बल्कि षट-कर्म सिखाये। देव भाग्य भरोसे, 12 योजन
भाग्य / पुरुषार्थ
“समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता” यह नीति है, सिद्धांत नहीं क्योंकि सिद्धांत तो सब पर लागू होता है,
नियतिवाद
नियतिवाद को जैन दर्शन नहीं स्वीकारता। पूरा पुरुषार्थ करने के बाद जो भी फल आया, उसे नियति मान कर स्वीकारता है। क्षपक श्रेणी में सब
विकार
महर्षि पराशर नाव से नदी पार कर रहे थे। सुन्दर युवती अकेले नाव खे रही थी। महर्षि के मन में विकार आ गया, युवती से
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
औपशमिक सम्यग्दर्शन होने पर मिथ्यात्व की तीनों प्रकृतियां सत्ता में बहुत समय तक रहती हैं। भावों में शुद्धि आने/ लाने से सम्यक्-प्रकृति का उदय करके
विभाव
लम्बी बीमारी/दवाईयों का लम्बा प्रयोग भी आदत बन जाती है। ऐसे ही लम्बे समय तक विभाव में रहने से हम उसे अपना स्वभाव मानने लगते
मन
“सुख-दु:ख के लिए कर्म कारण हैं” – यह तो प्रारम्भिक कथन है। असली कारण तो कर्मों से प्रभावित मन है, वर्तमान तथा भविष्य दोनों के
प्रकृति
सुंदरता प्रकृति की देन है, सूखे पत्ते तक को खाद बना देती है। उसको उजाड़ता मनुष्य ही है, देवता उजाड़ते नहीं, नारकी उजाड़ सकते नहीं,
अनित्य भावना
सुखों को अनित्य मानोगे तो पाने की आकुलता नहीं होगी, खोने पर दु:ख नहीं, तब जीवन में सकारात्मकता आयेगी। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
गुरु/भगवान की शक्त्ति
कौरवों के हारने का महत्त्वपूर्ण कारण – जो ब्रम्हास्त्र कर्ण ने मुख्य योद्धा अर्जुन के लिये रखा था, उसे घटोत्कच पर प्रयोग करने में बर्बाद
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