Month: February 2022

प्रमत्त

प्रमत्त अवस्था में जम्हायी आने पर मुंह पूरा खुल जाता है, पर पूरा खुलने पर भी कुछ खा नहीं सकते। सुभद्रा की प्रमत्त अवस्था की

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जैन दर्शन

जीने की बात आती है तो पहले ख़ुद जीने को कहा, फिर दूसरों को (जियो और जीने दो) । मरने के विषय में ख़ुद को

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धर्म

धर्म चेतन है क्योंकि यह धर्मात्माओं के आधार से रहता है। मुनि श्री महासागर जी

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मूर्ति / चरण

मूर्ति से वीतरागता मिलती है और चरण से शक्त्ति (निर्वाण/मोक्ष जाने के प्रतीक)| मुनि श्री सुधासागर जी

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पाप / पुण्य

पाप-कर्म भी पुण्य के उदय में ही होते हैं। जैसे 7वें नरक जाने के लिये, वज्रवृषभ-नाराच-संहनन चाहिये, जो बड़े पुण्य से ही मिलता है। मुनि

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मंदिर में रोना

आज संकट(कौरोना)के समय में मंदिरों के दरवाजे क्यों बंद हैं ? क्योंकि मंदिरों में रोने वाले उन्हें अपवित्र कर रहे थे। ऐसे ही सूतक के

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भजन : श्री विद्यासागरजी गुरुवर

भजन : “श्री विद्यासागरजी गुरुवर” प्रेरणा : परम पूज्य मुनिश्री क्षमासागरजी रचना : ऐलक श्री सम्यक्त्वसागर जी महाराज स्वर : प्रियंवदा जैन संगीत व रिकॉर्डिंग

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टंकोत्कीर्ण

“टंकोत्कीर्ण” शब्द का प्रयोग आत्मा की शुद्ध अवस्था के लिये आचार्य श्री अमृतचंद्र सूरी जी ने किया है, अन्य किसी आचार्य ने इसका प्रयोग नहीं

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Birth / Death

सूरज के उगने/अस्त होने को Sun का Birth/Death नहीं कहते बल्कि Sun-Rise/Set कहते हैं। आत्मा के आने और जाने को Rise/Set क्यों नहीं ! उसको

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सम्यग्दृष्टि / मिथ्यादृष्टि

बाह्य क्रियायें दोनों की एक सी, सम्यग्दृष्टि उन क्रियाओं को विभाव मानकर, जबकि मिथ्यादृष्टि स्वभाव मानकर करता है। मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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