Month: February 2022
भजन : अब मेरे समकित
भजन : “अब मेरे समकित” प्रेरणा : परम पूज्य मुनिश्री क्षमासागरजी रचना : पं. श्री भूधरदास जी स्वर : प्रियंवदा जैन निबद्ध रचना : राग
उपादान / निमित्त
साधारण/आम लोग निमित्त के अनुसार परिणमन करते हैं। महावीर भगवान ने कहा – उपादान की त्रैकालिक शक्त्ति पहचानो, उसे अभ्यास और विशुद्धता बढ़ा कर ऐसा
भाव-भंगिमा
भाव शब्दों के, भंगिमा शरीर की; दोनों एकरूप भी हो सकते हैं, भिन्न-भिन्न भी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
नासा दृष्टि
श्रमण श्रावक को देखेगा तो वीतरागता कम होगी; श्रावक श्रमण को देखेगा तो वीतरागता बढ़ेगी। सम्यग्दृष्टि को झुकी आँखें देखने (नासा दृष्टि) में आनंद आता
अस्तित्त्व स्वीकृति
चलते हाथी के ऊपर मक्खी बैठी थी। थोड़ी देर बाद मक्खी ने हाथी से कहा, “यदि मेरे बैठने से चलने में वज़न ज़्यादा लग रहा
चतुष्टय
जो स्व-चतुष्टय को समझ लेता है, वह पर-चतुष्टय का आलंबन नहीं लेता, क्योंकि वह जानता है कि दोनों में बराबर शक्तियाँ हैं। ज़रूरत स्व-चतुष्टय की
वैराग्य
वैराग्य में घर छोड़ा नहीं जाता। घर छूटता भी नहीं; अपने घर में आया जाता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मिथ्या/सम्यग्ज्ञान
ज्ञानी इंद्रिय को गौण करके सम्यग्ज्ञान को जगाता है। श्रद्धा की आंखों से मति/श्रुत ज्ञान की नयी पर्याय आंखें बंद करके देखता है जैसे स्वप्न
मान / आनंद
बहुत लोग तुम्हें जानते हैं; इससे मान की अनुभूति होगी। तुम बहुत लोगों को जानते हो; इससे आनंद की अनुभूति होगी। (सुमनलता – दिल्ली)
ज्ञान / दर्शन
हर वस्तु में मात्र ज्ञेयक शक्ति होती है पर ज्ञान और दर्शन में ज्ञायक तथा ज्ञेय दोनों शक्त्तियाँ होती हैं। सब पुदगल पर-प्रकाशित, लेकिन दीपक
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