Month: February 2022
सृष्टि / पुरुषार्थ
सृष्टि अधूरा देती है; पुरुषार्थ से हमको पूर्ण करने को कहती है, जैसे… बीज दिया, फ़सल किसान उगाये; मिट्टी दी, घड़ा कुम्हार बनाये; इन्द्रियां दीं,
सुख
मुनियों का सुख जैसे कुंए में ढूकना (झांकना), जैसे बच्चे का उस ओर दृष्टि करना। केवलज्ञानी का लगातार शीतल जल ग्रहण करना/ अनंत-सुख का अनुभव
इंद्रिय-विजय
आर्यिका श्री विज्ञानमती माताजी को आहार में इडली में तोरई डालकर दी गयी, पर उन्होंने उसे ग्रहण नहीं किया। कारण ? दोनों चीज़ें भक्ष्य थीं,
कृत्रिम
वैभव हमेशा परिग्रह ही नहीं, अनुग्रह* भी होता है। *Grace आर्यिका श्री विज्ञानमती माताजी
वैभव
वैभव हमेशा परिग्रह ही नहीं, अनुग्रह* भी है। *Grace मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मर्यादा
मनुष्य जागते में भी गिर जाते हैं; पक्षी सोते में भी नहीं। कारण ? पक्षी अपनी मर्यादा कभी नहीं छोड़ते; जबकि मनुष्य मर्यादा तोड़ने में
हितैषी / दुश्मन
हितैषी और दुश्मन की क्रियाएं (बाह्य) एक सी होती हैं; दोनों ही असहाय करने का प्रयत्न करते हैं। मुनि श्री सुधासागर जी
हाइकू
किसान तीन टांग वाले स्टैंड पर खड़ा होकर अनाज से भूसा अलग करता है। ऐसे ही तीन पदों के हाइकू से फ़ालतू शब्द छँट जाते
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