Month: March 2022

परमात्मा

परमात्मा के 2 भेद- 1. कार्य-परमात्मा – सिद्ध 2. कारण-परमात्मा – अनेक भेद – अरहंत, मुनि, देशव्रती – चलने के साहस की अपेक्षा, अविरत सम्यग्दृष्टि

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नियति

बचपन में नियति वह सब देती है, जिसकी ज़रूरत होती है। वृद्धावस्था में वह सब वापस लेती जाती है, जिस-जिस की ज़रूरत नहीं होती –

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स्वयंभूरमण

इस द्वीप (समुद्र की तरफ वाले आधे भाग) तथा समुद्र में कर्म-भूमि रहती है। समुद्र में जलचर जीव भी होते हैं। अढ़ाई द्वीप तथा स्वयंभूरमण

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ऊबना

रोज़ वही पूजा पाठ से कुछ लोगों को ऊब आने लगती है। वही लोग पाप भी रोज़ करते हैं, उससे ऊब क्यों नहीं होती ?

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जैन दर्शन

जैन दर्शन संसार मिटाने के लिये नहीं, चलाने के लिये है। हर उस क्रिया करने को बोला – जो स्व-पर हितकारी हो, सिर्फ एक के

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वृक्ष लगाना

“एक वृक्ष लगाने में 100 संतान पाने का पुण्य मिलता है”, ऐसा इसलिये कहा क्योंकि एक वृक्ष इतनी ऑक्सीजन देता है जो 100 बच्चों को

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वैयावृत्त्य

वैयावृत्त्य तीन प्रकार से की जा सकती है – 1. मानसिक – मन की, सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र है। 2. वाचनिक – नम्रतापूर्ण और प्रियवचनों से

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कर्त्तव्य / दायित्व

कर्त्तव्य – सबका/सब पर, दायित्व – कुछ का/कुछ पर । (कर्त्तव्य में प्राय: कर्त्ता भाव आ जाता है) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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निदान-ध्यान

5वें गुणस्थानवर्ती तक के गृहस्थ सांसारिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिये ध्यान करते हैं, पर 6वें गुणस्थान व आगे के मुनियोंकी सांसारिक इच्छायें समाप्त हो

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वास्तविक स्वरूप

संसार शोकमय, काया रोगमय, जीवन भोगमय, सम्बंध वियोगमय; बस, धर्म/सत्संग ही उपयोगमय होता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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March 6, 2022