Month: April 2022
पात्र/क्षेत्र/काल की शुद्धता
पात्र/क्षेत्र/काल की शुद्धता से मन/भावों में शुद्धि आती है जिससे आहारादि में विशेषता आ जाती है। आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने अकाल में स्वाध्याय किया, उनकी
दान
ख़ाली (ग़रीब) को भरोगे तो दिखेगा (फल); संतोष होगा; पुण्य बंध होगा। उसका तो पापोदय है; तभी तो ख़ाली है। तीव्र पापोदय में उसका भला
अनुशासन
अनुशासन-हीनता होगी तो पाप का अंत कभी नहीं होगा, जीवन निर्बल/ गया बीता होगा। अनुशासन से व्रतों/नियमों की रक्षा वैसे ही होती है जैसे कांटों
निरर्थक
अब मोबाइल नं. के पहले “0” लगाने की ज़रूरत नहीं। अगर Memory में पड़ा है तो हर्जा क्या है/ delete करने का क्या फायदा ?
अचौर्य
अचौर्य, वस्तुओं के प्रति चोरी के भाव भी नहीं रखना। शास्त्रों की चोरी* के भाव तो होने ही नहीं चाहिये, जबकि आज कुछ मुनि भी
सत्य
3 प्रकार के – 1. परमात्म सत्य – जो परमात्मा को जानता है 2. आत्म सत्य – जो आत्मा को जानता है 3. संसार सत्य
साधना
आजकल बड़ी साधना नहीं कर सकते, तो नासा दृष्टि रखने की कर सकते हैं, इससे पर-पदार्थ से रागद्वेष कम होगा; मौन से परिचय तथा मन
‘ही’ से ‘भी’
‘ही’ से ‘भी’ की ओर, ही बढ़ें सभी हम लोग। ‘६’ के आगे ‘३’ हों, विश्वशांति की ओर।। (‘ही’ ‘३६’, ‘भी’ ‘६३’) आचार्य श्री विद्यासागर
कर्मों का प्रभाव
निमित्तों और नोकर्मों से बचने पर, कर्मों का प्रभाव कम हो जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
राग-द्वेष
राग – ये पेन्सिल अच्छी है । द्वेष – ये पेन्सिल बुरी है । मोह – ये पेन्सिल मेरी है/मुझे मिल जाये । सच्चा ज्ञान
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