Month: April 2022
सम्यग्दृष्टि
आर्यिका श्री विशालमति माताजी – गुरुदेव ! इतने बड़े संघ के नायक होकर भी इतने निस्पृही कैसे ? आचार्य श्री विद्यासागर जी – मैं संघ
दृष्टि
साधु देखते हुए और भी बहुत कुछ देखते हैं, सुनते हुये और भी बहुत कुछ सुनते हैं जैसे किसी ने “मूर्ख” कहा तो वे ‘म’
सामायिक
रोजाना दिन में 3-3 बार एक सी बातों को दोहराना, क्योंकि राग ज्यादा है । पर पर्याय को विषय न बनायें क्योंकि पर्याय तो अस्थिर
अदृश्य
अदृश्य वायरस यदि आपको डरा सकता है, तो अदृश्य भगवान पर श्रद्धा आपको बचा भी सकती है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
अचित्त / हिंसा
अचित्त करने में एकेन्द्रियों की हिंसा तो होती है पर एकेन्द्रिय ज्यादा देर तक बने रहें तो त्रस जीवों की उत्पत्ति में भी कारण बनते
कृत्रिम / अकृत्रिम
मानव गगन चुंबी अट्टालिकायें तो बना सकता है पर सूर्य के प्रकाश को पूरी तरह रोक नहीं सकता, वह ऊपर से प्रकाशित कर जायेगा। हाँ
परिग्रह
समाधि के लिये पहले समधी बनना पड़ता है, परिग्रह-त्याग प्रतिमा के लिये “समाधी” शब्द आया है। परिग्रह को आप नहीं रखते, परिग्रह आपको रखता है/आपको
आवश्यक / आकर्षण
बाज़ार जाओ तो सेवक बन कर लिस्ट के अनुसार खरीददारी करो, मालिक बनकर गये तो चीजें आकर्षित करेंगी। जैसे कैमिस्ट की दुकान पर पर्चे के
ध्यान
वीतरागी के ध्यान से राग समाप्त होता है । पंचपरमेष्ठियों के ध्यान से पंचेन्द्रिय-विषयों पर काबू होता है । कौन क्या कर रहा है इस
परोपकार
चंदन के वृक्ष तो बहुत कम हैं/ कम ही बन सकते हैं। नीम के बन जाओ, औषधि युक्त। वह भी न बन सको तो जंगली
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