Month: April 2022
प्रेम / घृणा
क्या प्रेम व घृणा पौद्गलिक हैं ? (क्षायोपशमिक) ज्ञान सहित पौद्गलिक वर्गणायें हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सुख-दु:ख
घटना घटना होती है, उसका सुख-दु:ख से सम्बंध नहीं होता है । वरना बड़े बड़े ऑपरेशन हो ही नहीं सकते थे । ऐनसथिसिया देकर दर्द
अवर्णवाद
“मारीच” वह…. जो भगवान ने कहा, वह नहीं कहे। यही अवर्णवाद है। “महावीर” वह…. जो भगवान (पूर्व तीर्थंकरों) ने कहा, वही कहें। मुनि श्री प्रणम्यसागर
पीछे पड़ना
किसी के पीछे ज्यादा नहीं पड़ना चाहिये – इसका एक भव सुधारने के लिये अपने भव-भवांतर क्यों बिगाड़ना चाहते हो ! झगड़ा न करें पर
अनुप्रेक्षा
सुने हुये अर्थ का श्रुत के अनुसार चिंतन करना अनुप्रेक्षा है। बार बार विचार करने से विषय अच्छे ढ़ंग से खुल जाता है। बहुत नहीं,
महास्कंध
सब प्रकार के स्कंधों का समूह, महास्कंध कहलाता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
जन्म / कर्म
दूध, दही, मक्खन व घी का जन्म एक ही कुल में, पर कीमत अलग अलग। कारण ? श्रेष्ठता कुल में पैदा होने से नहीं बल्कि
आसन-सिद्धि
ध्यान-साधना वही कर सकता है जिसे आसन-सिद्धि हो। मैं कौन हूँ ! कौन से आसन पर बैठा हूँ, इसका भी ज्ञान ना हो यही आसन-सिद्धि
पूजा / भक्ति
पूजा गुणानुवाद है, भक्ति गुणानुराग – भगवान/गुरु व उनके गुणों से। भक्ति श्रद्धा का बाह्य रूप है पर इससे आंतरिक प्रेम उत्पन्न करता है। मुनि
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