Month: June 2022
ब्रम्हचर्य
पाँचों इन्द्रियों के विषयों से विरक्ति का नाम ब्रम्हचर्य-धर्म है। श्रावकों का धर्म…. दान, पूजा, शील व उपवास हैं। शील का अर्थ/स्वभाव…. ब्रम्हचर्य होता है।
प्रवृत्ति
राजा ने (निमित्त) ज्ञानी से पूछा – मेरा कुल कैसा है ? कुलीन नहीं है। पता लगाया गया, राजा एक चरवाहे का बेटा था, जो
सोलहकारण भावना
सोलहकारण भावना की हर भावना अपने आप में परिपूर्ण है। विनय-संपन्नता भी स्वतंत्र कारण है (तीर्थंकर बंध प्रकृति के लिये)। श्री धवला जी – मुनि
संसार
संसार रोग रूप है जैसे रोग को ठीक करने के लिये – 1. रोग का स्वरूप जानना होता है। 2. कारण भी जानना होगा। 3.
त्याग
त्याग में दान भी आता है (त्याग का ही भेद है) । दान पर-निमित्तिक है। त्याग स्व-निमित्तिक। आचार्य श्री विद्यासागर जी
पद का सम्मान
बहुरूपिया महल के सामने साधुवेश रखकर ध्यान में लीन था। सब लोग भेंट चढ़ा रहे थे, राजा ने भी हजार मुद्रायें चढ़ायीं। उसने किसी भी
संयम
आचार्य कुंदकुंद ने कहा है – वहाँ न जायें, जहाँ संयम की वृद्धि न हो अथवा संयम का पालन न हो सके । आचार्य श्री
ऊब
ऊब – दो प्रकार की – 1. नकारात्मक – आलसी प्रवृत्ति वालों में 2. सकारात्मक – क्रियाशील/परिवर्तन को महत्त्व देने वाले की मुनि श्री प्रमाणसागर
परिकर
पुरानी मूर्तियों में भगवान के चारों ओर परिकर इसलिये ताकि मन भगवान से ज्यादा दूर ना चला जाये। व्रतों की 5-5 भावनायें/परिकर्म, व्रतों में मन
पापोदय / लापरवाही
बाढ़ के वेग में डूबना unavoidable है, पर शांत जल में लापरवाही से डूबने की जुम्मेदारी ख़ुद की है। पापोदय में बीमारी आना समझ आता
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