Month: July 2022
मूर्तिक / अमूर्तिक
संसारी, पुद्गलों पर आधारित जैसे शरीर, श्वासोच्छवास, इसलिये मूर्तिक; “पर” से बाधित, सो व्यवहार। सिद्ध भगवान में यह सब नहीं, सो निश्चय। मुनि श्री प्रणम्यसागर
काल का महत्त्व
हनुमान जब सीता को ढूँढ़ने लंका जा रहे थे तब उन्होंने पूछा – लंका को पहचानूँगा कैसे ? जहाँ लोग सूर्योदय के बाद भी सोते
आस्था एक पर
जिस दुकान से माल लेते आये हो, हमेशा उस पर ही भरोसा रखें। यदि उनकी दुकान पर आपका माल नहीं होगा तो दूसरे की दुकान
मार्ग
मार्ग – दो 1. साधना – दृढ़ इच्छा वालों के लिये, कुछ लोग ही कर पाते हैं। अपने भुजबल से नदी पार करना। 2. आराधना
शांति
रूपक – एक बार भगवान ने सब कुछ बाँटा, बस एक चीज अपने पैरों के नीचे दबा ली, वह थी “शांति” । इसलिये “शांति”, शांतिनाथ
अनुरूप चाहना/बनाना
अनुरूप चाहने में बुराई नहीं पर हरेक को/ हर घटना को अपने अनुरूप बनाना, गलत सोच/ दु:ख का कारण है। हर व्यक्ति अपने-अपने स्वभाव से
गुप्ति
1. अप्रिय/व्यंग्यवाणी/असत्य बोलने से रोकती है। 2. प्रवृत्ति में भाषा-समिति के साथ/छन्ना लगाकर/हित, मित, प्रिय बोल। 3. निवृत्ति – बोलना ही नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर
दिव्य-दृष्टि
द्रोणगिर में हम 4-5 बहनों के आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रथम दर्शन के समय, मैने आ. श्री से कुछ व्रत/नियम के लिये प्रार्थना की।
अर्हद्भक्ति
अर्हद्भक्ति यानि अरहंत-भक्ति। स्तुतियाँ करना/रचना करना, अर्हद्भक्ति है। रत्नकरंड श्रावकाचार आदि कुछ ग्रंथों को छोड़ कर बाकी सब भक्ति-परक ग्रंथों की ही रचना की है,
गृहस्थ / साधु
तकलीफें बहुत, सो रहना नहीं; इस युग में मंज़िल (मोक्ष) मिलना नहीं। आचार्य श्री विद्यासागर जी – “अब और नहीं, छोर चाहता हूँ। घोर नहीं,
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