Month: August 2022
स्कंध / स्पर्धक
स्कंध – सभी प्रकार के परमाणु पिण्ड स्पर्धक – कर्म की अनुभाग शक्त्ति बताने के लिये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सफाई
कोरोना काल में बर्तन साफ करते समय महसूस हुआ कि – गंदे बर्तन जब साफ दिखते हैं तो मन को कितना अच्छा लगता है। ऐसे
निर्जरा
निर्जरा में मुख्य भूमिका आशय की। 1. निर्जरा चाहने वाला अंतरमुखी होगा 2. सम्यग्दर्शन के भाव से भी 3. इच्छा निरोध: तप: मुनि श्री प्रणम्यसागर
पथ्य / औषधि
यदि पथ्य का पालन हो तो औषधि की आवश्यकता नहीं, यदि पथ्य का पालन ना हो तो औषधि का प्रयोजन नहीं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
दान / हान / पान
लघु बनकर नहीं, गुरु बनकर ही धर्म का दान दिया जाता है। गुरु बनकर नहीं, लघु बनकर ही कर्म का हान किया जाता है। न
अंतराय
कर्म का तीव्र उदय आने पर उसका बुद्धिपूर्वक त्याग कर देना चाहिये, अंतराय मंद पड़ने लगता है। इसे कहते हैं – “कर्म फल सन्यास” इसे
सम्बंध
सम्बंध कांच जैसे होना चाहिये – 1. सावधानी जैसे कांच के बर्तनों के साथ रखते हैं 2. पारदर्शिता 3. टूटने पर ताप देकर नया बनाया
दोष निवारण
चार आना दोष पश्चाताप से नष्ट हो जाता है, चार आना गुरु को बताने से, चार आना प्रायश्चित लेने से, शेष बचा हुआ चार आना
दान
अमरकंटक प्रवास के दौरान एक युवक भारी घाटा होने से आत्मघात करने जा रहा था। उसे आचार्य श्री विद्यासागर जी से संबोधन दिलवाया – आचार्य
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