Month: September 2022
उत्तम संयम
अपने मन-वचन और इन्द्रियों को संयमित कर लेना, नियमित कर लेना, नियन्त्रित कर लेना, इसी का नाम संयम है। यदि हमने अपने जीवन में सत्य-ज्योति
भावनायें
पहले विनयशील बनाया, फिर अशुचि/अशरण भावना भाने को कहा। मोक्ष भावना नहीं तत्त्व है (भावों में आ भी नहीं सकता है)। संसार-भावना दी, यह अनुभव
उत्तम सत्य
जिसका मन जितना सच्चा होगा उसका जीवन भी उतना ही सच्चा होगा। जीवन उन्हीं का सच बनता है जो कषायों से मुक्त हो जाते हैं।
पुरुषार्थ / कर्मोदय
अनादि से रागद्वेष करते रहने से कर्मों में इतनी क्षमता आ गयी है कि आप रागद्वेष ना करना भी चाहें तो भी (तीव्र) कर्मोदय में
उत्तम शौच (लोभ न करना)
अपन आनन्द लें उस चीज़ का जो अपने को प्राप्त है। जो अपने पास है वह नहीं दिखता, जो दूसरों के पास है हमें वह
अगुरुलघु
1. सब जीवों में सामान्य गुण….जो उस द्रव्य के गुणों को बदलने नहीं देता, अपनी-अपनी पर्याय में ही परिणमन करता है। 2. नाम कर्म का
उत्तम आर्जव (कपट नहीं करना)
जीवन में उलझनें दिखावे और आडम्बर की वजह से हैं। कृत्रिमता का कारण है…. हम अपने को वैसा दिखाना चाहते हैं जैसे हम हैं नहीं।
विषय-भोग
केवल श्रद्धान मात्र से विषयों के प्रति झुकाव रुक नहीं जाता। सौधर्म इन्द्र/ भरत-चक्रवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टि हैं/ थे पर एक सैकिंड को भी विषय-भोग छोड़
उत्तम मार्दव (मान नहीं करना)
दूसरों के गुणों में अगर हम आह्लाद महसूस करते हैं तो मानियेगा हमारे भीतर मृदुता-कोमलता आनी शुरू हो गयी है। तृप्ति मान-सम्मान से भी नहीं
Recent Comments