Month: October 2022
भगवान के कल्याणक
भगवान, गर्भ कल्याणक में अन्य लोक का त्याग करते हैं, जन्म कल्याणक में माँ के गर्भ का, तप कल्याणक में घर/ घरवालों का, ज्ञान कल्याणक
उदारतापूर्ण विवेक
एक कलैक्टर ने महाराज जी से साम्प्रदायिक/राजनैतिक समस्याओं के लिये दिशा-निर्देश मांगा। महाराजा रणजीत सिंह का संस्मरण सुनाया – ताज़िया ऊंचा था, बरगद की शाखा
वैयावृत्ति
वैयावृत्ति अंतरंग तप में इसलिये क्योंकि यह मानसिकता को ठीक करता है (Ego को शांत करता है)। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
भारत
“भा” से ज्ञान जैसे सूर्य प्रकाश/ज्ञान का प्रतीक सो भास्कर। “रत” रमण करना/आनंद लेना। भारतीय – जो ज्ञान/ आध्यात्म में रमण/ आनंद लेते हैं। राधाकृष्ण
शुद्ध-भाव
संसारी जीवों के, आगम में दो ही भाव हैं – शुभ व अशुभ, शुद्ध-भाव तो सिद्धों में होगा। अध्यात्म में शुद्ध-भाव आता है, जिसका अर्थ
निश्चितता
आप हर समय आल्हादित कैसे रह लेते हैं ? मैं क्यों नहीं रह पाता ? ————————- एन.सी.जैन-नोएडा क्योंकि जो तुम्हारे पास* है, वह मेरे पास
लोभ
परिग्रह का दुरुपयोग – पाप है/ पापानुबंधी पुण्य है। सदुपयोग – पुण्य/ पुण्यानुबंधी पुण्य। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
गुणग्राही
गुण अवगुण सब में होते हैं। महत्त्वपूर्ण है कि पहली दृष्टि हमारी गुणों पर पड़ती है या अवगुणों पर। यदि गुणों पर है तो हम
कषायी
जो चीज़ तुम्हारी है नहीं, होगी नहीं, फिर भी लेने के भाव, कषायी के; मालिक देना नहीं चाहता फिर भी छीन लेना – अनंतानुबंधी कषायी।
निष्पक्ष
पक्षी ऊंचाइयाँ पाने बारी-बारी से दोनों पंखों को ऊपर नीचे करता है, दोनों को बराबर महत्त्व देता है। यदि एक पंख को ही ऊपर नीचे
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