Month: November 2022
जैन दर्शन
जैन दर्शन तो सम्प्रदाय है, व्यक्त्तिगत विचार/ चिंतन नहीं, महावीर/ आदिनाथ भगवान का विचार नहीं। इसलिये आनादि से अनंत तक एक ही सिद्धांत रहता है।
दृष्टि
दृष्टि 2 प्रकार की…. 1) Minimum को Maximum मानकर Maximum आनंद लेना। 2) Maximum को भी Minimum मानकर Minimum आनंद लेना। चिंतन
परिषह-जय/तप
बाइस परिषह पूरी तरह सहने से “जय”। “तप”…प्रवीण होने के लिये, उत्तर-गुण। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
निंदा
पर्वतों की चोटियों पर तप करने से भी ज्यादा कर्म कटते हैं, निंदा को सहन करने से। आचार्य श्री विद्यासागर जी
विसंवाद
विसंवाद साधर्मी से इसलिये कहा क्योंकि विधर्मी से सम्पर्क ही नहीं/ कम होता है। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
संभवता
संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है… असंभव से भी आगे निकल जाना। (अनुपम चौधरी)
मन
असंयत अवस्था में मन के अनुसार ही चले। संयत अवस्था में तो समझाओ कि अब वह तुम्हारे अनुसार चले। आचार्य श्री विद्यासागर जी
जीव/पुद्गल विपाकी
जीव विपाकी, फल जीव को; पुद्गल विपाकी शरीर/ नामकर्म को। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
समझदार
समझदार वह, जिसकी आँखें सामने वालों की बंद होती आँखें देखकर खुल जायें। मुनि श्री विशालसागर जी
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