Month: November 2022

अरहंत के ध्यान व लेश्या

अरहंत के ध्यान व लेश्या उपचार से कहे हैं। क्योंकि ध्यान तो मन से एकाग्रचित्त होने को कहा, पर मन(भाव) है नहीं तथा एकाग्रचित्त हो

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समस्या

कंकड़ को आँख के बहुत करीब ले आओ तो पहाड़ सा दिखेगा।पहाड़ को दूर से देखो तो कंकड़। समस्याओं के साथ भी ऐसा ही होता

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शुक्ल-ध्यान

दूसरे शुक्ल-ध्यान का समय, पहले शुक्ल-ध्यान से कम होता है, इसलिये इसमें योग-परिवर्तन के लिये समय नहीं रहता। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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याद

सम्बंधियों को याद करोगे तो दु:ख होगा/ कर्मबंध होगा। यह कहना कि उनके गुणों को/ उपकारों को याद करते हैं, यह भी पूर्ण सत्य नहीं,

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धर्म/शुक्ल ध्यान

समाधि में क्षपक शरीरगत मोह का धर्म-ध्यान से क्षय करता है। क्षपक-श्रेणी में मोह का क्षय शुक्ल-ध्यान से। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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बुद्धिमत्ता

राजा ने भूमि-दान में ब्राम्हणों को बहुत ज्यादा-ज्यादा भूमि दी क्योंकि वे विद्वान होते हैं, अन्य जाति वालों को कम। एक लुहार ने राजा से

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सूक्ष्मसाम्पराय

सूक्ष्मसाम्पराय को साम्पराय-चारित्र भी कहा है। सो सूक्ष्मसाम्पराय कषाय, गुणस्थान, चारित्र का भी नाम है। 10वें गुणस्थान तक चारित्र भी सराग, सम्यग्दर्शन भी चाहे क्षायिक

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गुरु-सानिध्य

एक चोर साधु की कुटिया को खुला देखकर, चोरी करने घुस गया। कुछ न मिलने पर लौटने लगा। साधु… “आये हो तो एक माला फेर

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गुरु

गुरु में देव, गुरु व शास्त्र तीनों समाहित हैं – गुरु की वाणी – जिनवाणी ; जिनमुद्रा देखते ही मोक्षमार्ग की अनुभूति। आचार्य श्री विद्यासागर

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अधिकार

संगठन, समाज और परिवार को “मालिक” नहीं, “माली” बन कर संभालिये! जो ख़्याल तो सब का रखता है, पर अधिकार किसी पर नहीं जताता! (अनुपम

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मंगल आशीष

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