Month: December 2022
जीव की अवगाहना
जीव की जघन्य अवगाहना एक प्रदेश क्यों नहीं ? सबसे छोटा शरीर (सूक्ष्म निगोदिया लब्धपर्याप्तक का) लोक का असंख्यातवाँ भाग होता है। जीव की अवगाहना
प्रायोगिक धर्म
प्रायोगिक धर्म यानि आंतरिक/ व्यवहारिक धर्म जिसका प्रयोग घर तथा कारोबार में हो। इसके अभाव में मन्दिर में रामायण तथा घर/ कारोबार में महाभारत! इसीलिये
माया
वेदांत दर्शन में…. संसार माया है, जैन दर्शन में…. मोह से माया है। इसलिये संसार को मोह-माया कहा है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
विश्वास
हालाँकि अंधकार बहुत विशाल है, दीपशिखा छोटी सी, पर मेरा विश्वास दीपशिखा पर विशाल है। (मेरे आसपास वह अंधकार को भटकने भी नहीं देगी) श्री
निवृत्ति / प्रवृत्ति
सामायिक में निवृत्ति, भाव….”मेरा कोई नहीं”। सामायिक से उठने पर…. “मैत्री भाव सब जीवों से”। भावों में विपरीतता इसलिये क्योंकि प्रवृत्ति में तो हिंसा होती
ईश्वर
अपने में ईश्वर को देखना…. ध्यान है, दूसरों में ईश्वर को देखना…….प्रेम, सबमें ईश्वर को देखना………ज्ञान है। (श्रीमति शर्मा)
संज्ञा
भय-नोकषाय कारण है। भय-संज्ञा कार्य है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
संकल्प / अभ्यास
ठंडी सहने को संकल्प तथा अभ्यास चाहिये, गर्म खून नहीं। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
जिनवाणी
आचार्य कुंदकुंद जी ने लिखा है…. गणधर सम्यक् रूप से भगवान की वाणी को गूँथ कर जिनवाणी की रचना करते हैं। सम्यक् यानि सच्चा/ जैसा
उतावली
आप चाहे कितनी भी उतावली कर लो/ दौड़ लो, दुनियाँ अपनी गति से ही चलती रहेगी। हड़बड़ी में काम खराब तथा कर्म बंध भी ज्यादा
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