Month: February 2023
काय
कर्मोदय से काय जीव को अनुभव कराती है कि वह स्थावर या त्रस (द्वींद्रिय से पंचेंद्रिय) जाति का जीव है। जाति, त्रस और स्थावर जीव-विपाकी
धन संचय
संसार में धन संचय से समृद्धि/ प्रगति बताई, धर्म में दुर्गति। लेकिन संचित समृद्धि का सदुपयोग किया तो शाश्वत प्रगति। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
उत्कर्षण
उत्कर्षण नीचे के निषकों के परमाणुओं को उपांतरित* (ऊपर के) निषेकों में मिलाने को कहते है। अपकर्षण उसका विपरीत। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी *संशोधित
समझना
जिसने अपनी कमज़ोरियों को समझ लिया, वह सँभल गया। जिसने अपने आपको (कुछ) समझ लिया, वह उलझ गया। चिंतन
अनुयोग
प्रथमानुयोग पाप से डरा कर भय की सीमारेखा खींच देता है; पुण्य कार्यों के प्रति आकृष्ट करता है। करणानुयोग कर्म सिद्धांत बताकर नियमों में बांध
पुण्य / पाप
पेट के लिये कमाना पुण्य, क्योंकि जीवों की रक्षा हो रही है, Detached-Attachment, पुण्य का बाप। पेटी के लिये कमाना पाप, लोभ की रक्षा हो
अपूर्व-करण में काम
अपूर्व-करण के कार्यों (बंधव्युच्छित्ति) को देखते हुए, इसके 7 भाग किये हैं। पहले, छठे व सातवें गुणस्थानों के कार्य बताये गये हैं। मेरे प्रश्न किये
अध्यात्म / ध्यान
आचार्य श्री विद्यासागर जी को बताया गया कि अध्यात्म/ध्यान शिविर लगाया जा रहा है और उसके लिये बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाया जा रहा है। आचार्यश्री
अपूर्व/अधः करण
अपूर्वकरण में अधःकरण की तुलना से – 1. परिणामों की संख्या ज्यादा है। 2. समय कम है (यदि 8 तो अधःकरण में 16)। 3. चय
पूर्ण
पूर्ण को जाना नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है जैसे पूरे चावलों को जानने चले (दबा-दबा कर देखा) तो चावल की जगह
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