Month: April 2023
वर्गणायें
सत्य/असत्य, उभय/अनुभय वर्गणायें अलग-अलग होतीं हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा – 217)
घमंड / वैभव
आचार्य श्री विद्यानंद जी के प्रवचनों को सुनने एक संभ्रांत महिला रोजाना आती थीं पर चटाई पर न बैठकर जमीन पर बैठतीं थीं। कारण :
शुक्लध्यान
दूसरे शुक्लध्यान से १२वें गुणस्थान(के अंत में) औदारिक शरीर का अभाव तथा परम औदारिक शरीर का प्रादुर्भाव होता है। इसके अंतर्मुहूर्त काल के प्रत्येक समय
अपराधी कौन ?
जब गरीब तथा अमीर नितांत अकेले पैदा व मरते हैं, कुछ लेकर नहीं आते हैं तो गरीबी/अमीरी के लिए दोषी कौन ? भगवान को दोष
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन/ मिथ्यादर्शन, भव्यता/ अभव्यता हमारे क्षयोपशमिक-ज्ञान का विषय नहीं हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
भगवान महावीर जयंती
जीना है तो जीने दें, वरना जीना सम्भव नहीं हो पायेगा। दूसरे को मारा नहीं सो अहिंसा पर दूसरे को बचाया नहीं तो अहिंसा का
निवृत्ति-अपर्याप्तक
क्या अपर्याप्तक अवस्था में पर्याप्त-नामकर्म के उदय में निम्न पर्याप्तियें पूर्ण हो जाती हैं ? (एकेइंद्रिय-4, विकलेंद्रिय-5, संज्ञी-6) 1. मत – जब तक दूसरी(शरीर) पर्याप्ति
संस्कार
अनाज का अकाल होने से मानव समाप्त, संस्कार के अकाल से मानवता समाप्त। मन में संस्कार हों तब हाथ में माला ना भी हो तो
अनुभय-वचन
अनुभय-वचन विकलेंद्रियों के तथा संज्ञी के आमंत्रणादि रूप में होते हैं। विकलेंद्रियों के वचन तो हैं पर हमें समझ नहीं आते/ अर्थक्रिया पकड़ में नहीं
अंतरंग / बाह्य
घड़े में पानी हो तो बाहर संकेत दिखते हैं/ स्पर्श करने पर शीतलता महसूस होगी ही। अंतरंग में गुण/ ज्ञान/ चारित्र हो तो बाह्य में
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