Month: August 2023

स्वर्गों में वेद

16 स्वर्ग के ऊपर वेद की उदीरणा तो है पर प्रतिकार नहीं क्योंकि अतीत में महाव्रती के संस्कार हैं। जैसे प्रवचन के समय में क्षुधा

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सुधार

अशुभ निमित्तों से भावनाओं को खराब होने मत दो। ऐसे Object को देखते ही सुधार प्रक्रिया शुरु कर दो। जैसे युवा वेश्या का शव दिख

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उपयोग

वस्तु के निमित्त से जीव के देखने जानने के भाव को उपयोग कहते हैं। 1. दर्शनोपयोग – अनाकार, सामान्य, निर्विकल्प 2. ज्ञानोपयोग – साकार, विशेष,

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लोभ

लोभ को पाप का बाप क्यों कहा ? क्योंकि लोभ के लिये अपमान को पी जाते हैं, लोभ से ही मायाचारी आती है, लोभ असफल

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प्रवीचार

16 स्वर्ग के ऊपर की विशुद्धि 16 स्वर्गों से ज्यादा होती है। 16वें स्वर्ग में प्रवीचार मन से होता है, इसलिए इसके ऊपर मन से

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मौन

मौन में बात बंद करना नहीं होता है, बस दूसरों की जगह अपने आप से बात करनी होती है। चिंतन

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अशुभ से शुभ

अशुभ निमित्तों को देखो मत, दिख जाऐं तो बारह-भावना आदि रुपी मशीनों में डाल दो जैसे संसार, अशुचि, संवर की मशीनों में। Output शुभ निकलेगा।

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मन

मन कोमल होता है सो आकार ले लेता गर्म लोहे जैसा, झुक जाता है तूफानों में, घुल जाता अपनों में/ अपने में। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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व्यवहार / निश्चय

व्यवहार में निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध होता है। निश्चय में उपादान की प्रधानता। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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August 21, 2023