Month: October 2023

निंदा

नीचगोत्र-बंध का हेतु निंदा बताया (तत्त्वार्थ सूत्र जी), जबकि नरक में उच्चगोत्र-बंध भी होता है। तो क्या हम नारकियों से भी गये बीते हैं ?

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बुरा

बुराई करने वाला बुरा नहीं होता है, (वो तो बस) बुराई करने से बुरा हो जाता(सिर्फ बुराई करते समय)। गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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वेग/ उद्वेग/ निर्वेग

यदि भेद विज्ञान से कर्म/ नोकर्म/ आत्मा के स्वभाव की ओर देखें तो शरीर के प्रति आसत्ति का वेग कम होगा, उसे ही “निर्वेग” कहते

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धार्मिक ज्ञान

धार्मिक ज्ञान की उपयोगिता वैसी ही है जैसी शुरू में पढ़ी गणित की इंजीनियरिंग आदि में। 1. धार्मिक ज्ञान से जीवों का पता लगता उनकी

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मिथ्यादृष्टि का काल

सम्यग्दृष्टि सागर के बराबर संसार को चुल्लू भर लेता है। मिथ्यादृष्टि चुल्लू भर संसार को सागर बना लेता है। चिंतन

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आवश्यक

“आवश्यक” भी मांगें नहीं, “आवश्यक” करें, तब “आवश्यक” मिल जाएंगे। चिंतन

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विनय-भावना

दर्शन विशुद्धि के बाद विनय इसलिये रखी क्योंकि अब वह गुणों (सम्यग्दर्शन आदि) को जान गया/ उन पर श्रद्धा आ गयी है। श्रद्धावान ही सच्ची

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कठोरता / मृदुलता

कठोरता से निर्माण, मृदुलता से कल्याण। जैसे फोड़े को फोड़ते कठोरता से, उपचार मृदुलता से। अपना फोड़ा फोड़ो, दूसरे पर मलहम लगाओ। मुनि श्री प्रमाणसागर

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कर्मों की कार्यविधि

हमको अच्छा/ बुरा, नाम/ गोत्र/ वेदनीय कर्मों के उदय से मिलता है। कामों में अवरोध अंतराय के उदय से। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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समता

हर बात को स्वीकार कीजिए, समता आपकी बलशाली होगी। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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