Month: December 2023
तीर्थंकर के निहार
तीर्थंकर के निहार नहीं, कैसे समझें ? लकड़ी जलाने पर राख, उतना कपूर जलाने पर ?? आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज्ञानी
जो ज्ञानी हैं वो कभी विचलित नहीं हुआ करते हैं जैसे सूर्य में चाहे जितना ताप हो वह समुद्र को सुखा नहीं सकता है।
पाप/पुण्य प्रकृति
पुण्य प्रकृति – 42 (सातादि + 37 नामकर्म की)। पाप प्रकृति – 82 लगभग डबल, इसीलिये सबल हैं। मुनि श्री प्रमाण सागर जी
Mistake / Success
A Mistake increases your experience & experience decreases your mistakes. You learn from your mistakes then others learn from your success.
कषाय मार्गणा
चारों कषाय 1 से 9/10वें गुणस्थान तक रहतीं हैं। क्रोध, मान, मायाचारी 9वें गुणस्थान के क्रमश: 2, 3, 4थे भाग तक। लोभ 10वें गुणस्थान तक।
डर
समुद्र के करीब पहुँच कर नदी विशालता को देख डरी, पर लौटने का रास्ता नहीं था। डर छोड़ कूद गयी समुद्र में और समुद्र बन
भव्यत्व
वैसे तो भव्यत्व अनादि-सांत है पर एक आचार्य ने सादि-सांत भी कहा है → सम्यग्दर्शन होने पर ही भव्यत्व माना है। आर्यिका श्री विज्ञानमति जी
सफलता
सफलता में दोषों को मिटाने/ भुलाने की विलक्षण शक्ति होती है। मुंशी प्रेमचंद्र जी
देवों का अवधिज्ञान
देवों का अवधिज्ञान कैसा ? योगेन्द्र देवों का अवधिज्ञान स्थिर होता है, उनके क्षयोपशम में भी ज्यादा कमी/ बढ़ोतरी नहीं होती। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
स्वाध्याय
कथायें आदि जानने से कल्याण नहीं होगा। जो नहीं जानते और उसे जानने का पुरुषार्थ करते हैं, उससे भला होगा। वे भव्य-सिद्ध हैं। जैसे शुरु
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